सूत्रपाहुड़ गाथा 12: Difference between revisions
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Latest revision as of 19:50, 3 November 2013
जे बावीसपरीसह सहंति सत्तीसएहिं संजुत्त ।
ते होंति१ वंदणीया कम्मक्खयणिज्जरासाहू ॥१२॥
ये द्वाविंशतिपरीषहान् सहन्ते शक्तिशतै: संयुक्ता: ।
ते भवन्ति वन्दनीया: कर्मक्षयनिर्जरासाधव: ॥१२॥
आगे फिर उनकी प्रवृत्ति का विशेष कहते हैं -
अर्थ - जो साधु मुनि अपनी शक्ति के सैंकड़ों से युक्त होते हुए क्षुधा, तृषादिक बाईस परीषहों को सहते हैं और कर्मों की क्षयरूप निर्जरा करने में प्रवीण हैं, वे साधु वंदने योग्य हैं ।
भावार्थ - - जो बड़ी शक्ति के धारक साधु हैं, वे परीषहों को सहते हैं, परीषह आने पर अपने पद से च्युत नहीं होते हैं, उनके कर्मों की निर्जरा होती है, वे वंदने योग्य हैं ॥१२॥