सिंहनिष्क्रीडित: Difference between revisions
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Revision as of 13:19, 7 July 2023
एक विशिष्ट तप । यह उत्तम, मध्यम और जघन्य के भेद हें नान प्रकार का होता है । जघन्य तप में साठ और बीस स्थानों की बीस पारणाएँ की जाती है । उपवास निम्न क्रम में किये जाते हैं―
1, 2, 1, 3, 3, 2, 4, 3, 5, 4, 5, 5, 4, 5, 3, 4, 2, 3, 1, 2, 1 = 60 मध्यम भेद में एक सौ त्रेपन उपवास और तैंतीस स्थानों का तैंतीस पारणाऐं करने का विधान है । ये उपवास निम्न क्रम में किये जाते हैं―
1, 2, 1, 3, 2, 4, 3. 5, 4, 6, 5 7, 6, 8, 7, 8, 9, 8, 7, 8, 6, 7, 5, 6, 4, 5, 3, 4, 2, 3, 1, 2, 1 = 153 उत्तम भेद में चार सौ छियानवें उपवास और इकसठ पारणाएँ की जाती है । उपवास निम्न क्रम में किये जाते हैं―
1, 2, 1, 3, 2, 4, 3, 5, 4, 6, 5, 7, 6, 8, 7, 9, 8, 10, 9, 11, 10, 12, 11, 13, 12, 14, 13, 15, 14, 15, 16, 15, 14, 15, 13, 14, 12, 13, 11, 12, 10, 11, 9, 10, 8, 9, 7, 8, 6, 7, 5, 6, 4, 5, 3, 4, 2, 3, 1, 2, 1 = 496 महापुराण 7.23 हरिवंशपुराण 33.166, 34.50, 78-83