सुदत्त: Difference between revisions
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<p id="2">(2) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित कलिंग देश के कांचीपुर नगर का एक वैश्य था । इसने सूरदत्तवैश्य के साथ युद्ध किया था । इस युद्ध में दोनों एक दूसरे के द्वारा मारे गये थे । <span class="GRef"> महापुराण 70.127-132 </span></p> | <p id="2">(2) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित कलिंग देश के कांचीपुर नगर का एक वैश्य था । इसने सूरदत्तवैश्य के साथ युद्ध किया था । इस युद्ध में दोनों एक दूसरे के द्वारा मारे गये थे । <span class="GRef"> महापुराण 70.127-132 </span></p> | ||
<p id="3">(3) भरतक्षेत्र की अयोध्या नगरी के चक्रवर्ती पुष्पदंत अरि रानी प्रीतिंकरी का पुत्र । इसने विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में नंदपुर के राजा हरिषेण के पुत्र हरिवाहन को मारकर दक्षिणश्रेणी में ही मेघपुर नगर के राजा धनंजय की पुत्री धनश्री के साथ पाणिग्रहण किया था । <span class="GRef"> महापुराण 71.252-257 </span></p> | <p id="3">(3) भरतक्षेत्र की अयोध्या नगरी के चक्रवर्ती पुष्पदंत अरि रानी प्रीतिंकरी का पुत्र । इसने विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में नंदपुर के राजा हरिषेण के पुत्र हरिवाहन को मारकर दक्षिणश्रेणी में ही मेघपुर नगर के राजा धनंजय की पुत्री धनश्री के साथ पाणिग्रहण किया था । <span class="GRef"> महापुराण 71.252-257 </span></p> | ||
<p id="4">(4) सिंधु देश की वैशाली नगरी के राजा चेटक और रानी सुभद्रा का चौथा पुत्र । धनदत्त, धनभद्र, उपेंद्र इसके | <p id="4">(4) सिंधु देश की वैशाली नगरी के राजा चेटक और रानी सुभद्रा का चौथा पुत्र । धनदत्त, धनभद्र, उपेंद्र इसके बड़े भाई तथा सिंहभद्र, सुकुंभोज, अकंपन, पतंगक, प्रभंजन और प्रभास छोटे भाई थे । प्रियकारिणी आदि इसकी सात बहिनें थी । <span class="GRef"> महापुराण 75. 3-7 </span></p> | ||
<p id="5">(5) पद्मखेटपुर का एक सेठ । इसी के पुत्र भद्रमित्र को सिंहपुर के राजा ने सत्यघोष नाम दिया था । <span class="GRef"> महापुराण 59.148-173 </span></p> | <p id="5">(5) पद्मखेटपुर का एक सेठ । इसी के पुत्र भद्रमित्र को सिंहपुर के राजा ने सत्यघोष नाम दिया था । <span class="GRef"> महापुराण 59.148-173 </span></p> | ||
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Revision as of 13:06, 24 March 2023
(1) जंबूद्वीप के ऐरावत क्षेत्र में स्थित गांधार देश के विष्णुपुर नगर के सेठ धनमित्र और उसकी पत्नी श्रीदत्ता का पुत्र । इसकी स्त्री प्रीतिंकरा थी । नलिनकेतु द्वारा प्रीतिंकरा का अपहरण किये जाने से विरक्त होकर इसने अत मुनि से दीक्षा ले ली थी । अंत में संन्यासमरण करके यह ऐशान स्वर्ग में देव हुआ । महापुराण 63.99-104
(2) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित कलिंग देश के कांचीपुर नगर का एक वैश्य था । इसने सूरदत्तवैश्य के साथ युद्ध किया था । इस युद्ध में दोनों एक दूसरे के द्वारा मारे गये थे । महापुराण 70.127-132
(3) भरतक्षेत्र की अयोध्या नगरी के चक्रवर्ती पुष्पदंत अरि रानी प्रीतिंकरी का पुत्र । इसने विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में नंदपुर के राजा हरिषेण के पुत्र हरिवाहन को मारकर दक्षिणश्रेणी में ही मेघपुर नगर के राजा धनंजय की पुत्री धनश्री के साथ पाणिग्रहण किया था । महापुराण 71.252-257
(4) सिंधु देश की वैशाली नगरी के राजा चेटक और रानी सुभद्रा का चौथा पुत्र । धनदत्त, धनभद्र, उपेंद्र इसके बड़े भाई तथा सिंहभद्र, सुकुंभोज, अकंपन, पतंगक, प्रभंजन और प्रभास छोटे भाई थे । प्रियकारिणी आदि इसकी सात बहिनें थी । महापुराण 75. 3-7
(5) पद्मखेटपुर का एक सेठ । इसी के पुत्र भद्रमित्र को सिंहपुर के राजा ने सत्यघोष नाम दिया था । महापुराण 59.148-173