स्तूप: Difference between revisions
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सिद्धांतकोष से
- महापुराण/22/264 जनानुरागास्ताद्रूप्यम् आपन्ना इव ते बभु:। सिद्धार्हत्प्रतिबिंबौधै: अभितश्चित्रमूर्तय:। = अर्हंत सिद्ध भगवान् की प्रतिमाओं से वे स्तूप चारों ओर से चित्रविचित्र हो रहे थे और सुशोभित हो रहे थे मानो मनुष्यों का अनुराग ही स्तूपों रूप हो रहा हो।264। समवशरण स्थिति स्तूप-देखें समवशरण
- Pyramid. ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ प्र./108)
पुराणकोष से
समवसरण-रचना का एक अंग । ये समवसरण की वीथियों के मध्यभाग में बनाये जाते हैं । अर्हंत और सिद्ध परमेष्ठियों की प्रतिमाएँ इनके चारों ओर स्थापित की जाती है । महापुराण 22.263-269