कल्याणक: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<ol class="HindiText"> | |||
<li><strong> कल्याणक व्रत–</strong>पहले दिन दोपहर को एकलठाना (कल्याणक तिथि में उपवास तथा उससे अगले दिन आचाम्ल भोजन (इमली व भात) खाये। इस प्रकार पंचकल्याणक के १२० तिथियों के १२० उपवास ३६० दिन में पूरे करे। (ह.पु./३४/१११-११२)।<br /> | |||
</li> | |||
<li><strong> चन्द्र कल्याणक व्रत–</strong>क्रमश: ५ उपवास, ५ कांजिक (भात व जल); ५ एकलठाना (एक बार पुरसा); ५ रूक्षाहार; ५ मुनि वृत्ति से भोजन (अन्तराय टालकर मौन सहित भोजन), इस प्रकार २५ दिन तक लगातार करे। (वर्द्धमान पुराण) (व्रत विधान संग्रह पृ० ६९)<br /> | |||
</li> | |||
<li><strong> निर्वाण कल्याणक व्रत–</strong>चौबीस तीर्थंकरों के २४ निर्वाण तिथियों में उनसे अगले दिनों सहित दो-दो उपवास करे। तिथियों के लिए देखो तीर्थंकर ५। (व्रत विधान संग्रह। पृ० १२४) (किशन सिंह क्रिया कोश)।</li> | |||
<li><strong> पंचकल्याणक व्रत–</strong>प्रथम वर्ष में २४ तीर्थंकरों की गर्भ तिथियों के २४ उपवास; द्वितीय वर्ष में जन्म तिथियों के २४ उपवास; तृतीय वर्ष में तप कल्याणक की तिथियों के २४ उपवास, चतुर्थ वर्ष में ज्ञान कल्याणक की तिथियों के २४ उपवास और पंचम वर्ष में निर्वाण कल्याणक की तिथियों के २४ उपवास–इस प्रकार पाँच वर्ष में १२० उपवास करे। ‘‘ॐ ह्रीं वृषभादिवीरान्तेभ्यो नम:’’ इस मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे।–यह बृहद् विधि है। एक ही वर्ष में उपरोक्त सर्व तिथियों के १२० उपवास पूरे करना लघु विधि है। ‘‘ॐ ह्रीं वृषभादिचतुर्विंशतितीर्थंकराय नम:’’ इस मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे। (पंच कल्याणक की तिथि में–देखें - [[ तीर्थंकर#5 | तीर्थंकर / ५]])। (व्रत विधान संग्रह। पृ० १२६) (किशन सिंह कथा कोश)। <br /> | |||
</li> | |||
<li><strong> परस्पर कल्याणक व्रत–</strong> | |||
<ol> | |||
<li> बृहद् विधि–पंच कल्याणक, ८ प्रातिहार्य, ३४ अतिशय–सब मिलकर प्रत्येक तीर्थंकर सम्बंधी ४७ उपवास होते हैं। २४ तीर्थंकरों सम्बंधी ११२८ उपवास एकांतरा रूप से लगातार २२५६ दिन में पूरे करे। (ह.पु./३४/१२५)<br /> | |||
</li> | |||
<li> मध्यम विधि–क्रमश: १ उपवास, ४ दिन एकलठाना (एक बार का परोसा); ३ दिन कांजी (भांत व जल); २ दिन रूक्षाहार; २ दिन अन्तराय टालकर मुनि वृत्ति से भोजन और १ दिन उपवास इस प्रकार लगातार १३ दिन तक करे। नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप्य दे। (वर्द्धमान पुराण) (व्रत विधान संग्रह/पृ०७०)<br /> | |||
</li> | |||
<li> लघु विधि–क्रमश: १ उपवास, १ दिन कांजी (भांत व जल); १ दिन एकलठाना (एक बार पुरसा); १ दिन रूक्षाहार; १ दिन अन्तराय टालकर मुनिवृत्ति से आहार, इस प्रकार लगातार पाँच दिन करे। नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप्य। (वर्द्धमान पुराण) (व्रत विधान संग्रह/पृ०६९) <br /> | |||
</li> | |||
</ol> | |||
</li> | |||
<li><strong> शील कल्याणक व्रत–</strong>मनुष्यणी, तिर्यंचिनी, देवांगना व अचेतन स्त्री इन चार प्रकार की स्त्रियों में पाँचों इन्द्रियों व मन वचन काय तथा कृत कारित अनुमोदना से गुणा करने पर १८० भंग होते हैं। ३६० दिन में एकान्तरा क्रम से १८० उपवास पूरा करे। नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे। (ह.पु./३४/११३) (व्रत विधान संग्रह/पृ० ६८) (किशन सिंह क्रियाकोश)</li> | |||
<li><strong> श्रुति कल्याणक व्रत–</strong>क्रमश: ५ दिन उपवास, ५ दिन कांजी (भांत व जल); ५ दिन एकलठाना (एक बार पुरसा) ५ दिन रूक्षाहार, ५ दिन मुनि वृत्ति से अन्तराय टालकर मौन सहित भोजन, इस प्रकार लगातार २५ दिन तक करे। नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप्य। (व्रत-विधान संग्रह/पृ० ६९) (किशन सिंह क्रियाकोश)</li> | |||
</ol> | |||
[[कल्याण | Previous Page]] | |||
[[हीनादिक कल्याणक वाले तीर्थंकर | Next Page]] | |||
[[Category:क]] | |||
, | |||
Revision as of 21:16, 24 December 2013
- कल्याणक व्रत–पहले दिन दोपहर को एकलठाना (कल्याणक तिथि में उपवास तथा उससे अगले दिन आचाम्ल भोजन (इमली व भात) खाये। इस प्रकार पंचकल्याणक के १२० तिथियों के १२० उपवास ३६० दिन में पूरे करे। (ह.पु./३४/१११-११२)।
- चन्द्र कल्याणक व्रत–क्रमश: ५ उपवास, ५ कांजिक (भात व जल); ५ एकलठाना (एक बार पुरसा); ५ रूक्षाहार; ५ मुनि वृत्ति से भोजन (अन्तराय टालकर मौन सहित भोजन), इस प्रकार २५ दिन तक लगातार करे। (वर्द्धमान पुराण) (व्रत विधान संग्रह पृ० ६९)
- निर्वाण कल्याणक व्रत–चौबीस तीर्थंकरों के २४ निर्वाण तिथियों में उनसे अगले दिनों सहित दो-दो उपवास करे। तिथियों के लिए देखो तीर्थंकर ५। (व्रत विधान संग्रह। पृ० १२४) (किशन सिंह क्रिया कोश)।
- पंचकल्याणक व्रत–प्रथम वर्ष में २४ तीर्थंकरों की गर्भ तिथियों के २४ उपवास; द्वितीय वर्ष में जन्म तिथियों के २४ उपवास; तृतीय वर्ष में तप कल्याणक की तिथियों के २४ उपवास, चतुर्थ वर्ष में ज्ञान कल्याणक की तिथियों के २४ उपवास और पंचम वर्ष में निर्वाण कल्याणक की तिथियों के २४ उपवास–इस प्रकार पाँच वर्ष में १२० उपवास करे। ‘‘ॐ ह्रीं वृषभादिवीरान्तेभ्यो नम:’’ इस मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे।–यह बृहद् विधि है। एक ही वर्ष में उपरोक्त सर्व तिथियों के १२० उपवास पूरे करना लघु विधि है। ‘‘ॐ ह्रीं वृषभादिचतुर्विंशतितीर्थंकराय नम:’’ इस मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे। (पंच कल्याणक की तिथि में–देखें - तीर्थंकर / ५)। (व्रत विधान संग्रह। पृ० १२६) (किशन सिंह कथा कोश)।
- परस्पर कल्याणक व्रत–
- बृहद् विधि–पंच कल्याणक, ८ प्रातिहार्य, ३४ अतिशय–सब मिलकर प्रत्येक तीर्थंकर सम्बंधी ४७ उपवास होते हैं। २४ तीर्थंकरों सम्बंधी ११२८ उपवास एकांतरा रूप से लगातार २२५६ दिन में पूरे करे। (ह.पु./३४/१२५)
- मध्यम विधि–क्रमश: १ उपवास, ४ दिन एकलठाना (एक बार का परोसा); ३ दिन कांजी (भांत व जल); २ दिन रूक्षाहार; २ दिन अन्तराय टालकर मुनि वृत्ति से भोजन और १ दिन उपवास इस प्रकार लगातार १३ दिन तक करे। नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप्य दे। (वर्द्धमान पुराण) (व्रत विधान संग्रह/पृ०७०)
- लघु विधि–क्रमश: १ उपवास, १ दिन कांजी (भांत व जल); १ दिन एकलठाना (एक बार पुरसा); १ दिन रूक्षाहार; १ दिन अन्तराय टालकर मुनिवृत्ति से आहार, इस प्रकार लगातार पाँच दिन करे। नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप्य। (वर्द्धमान पुराण) (व्रत विधान संग्रह/पृ०६९)
- बृहद् विधि–पंच कल्याणक, ८ प्रातिहार्य, ३४ अतिशय–सब मिलकर प्रत्येक तीर्थंकर सम्बंधी ४७ उपवास होते हैं। २४ तीर्थंकरों सम्बंधी ११२८ उपवास एकांतरा रूप से लगातार २२५६ दिन में पूरे करे। (ह.पु./३४/१२५)
- शील कल्याणक व्रत–मनुष्यणी, तिर्यंचिनी, देवांगना व अचेतन स्त्री इन चार प्रकार की स्त्रियों में पाँचों इन्द्रियों व मन वचन काय तथा कृत कारित अनुमोदना से गुणा करने पर १८० भंग होते हैं। ३६० दिन में एकान्तरा क्रम से १८० उपवास पूरा करे। नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे। (ह.पु./३४/११३) (व्रत विधान संग्रह/पृ० ६८) (किशन सिंह क्रियाकोश)
- श्रुति कल्याणक व्रत–क्रमश: ५ दिन उपवास, ५ दिन कांजी (भांत व जल); ५ दिन एकलठाना (एक बार पुरसा) ५ दिन रूक्षाहार, ५ दिन मुनि वृत्ति से अन्तराय टालकर मौन सहित भोजन, इस प्रकार लगातार २५ दिन तक करे। नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप्य। (व्रत-विधान संग्रह/पृ० ६९) (किशन सिंह क्रियाकोश)