प्राप्ति समा जाति: Difference between revisions
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Revision as of 12:49, 25 August 2022
न्यायदर्शन सूत्र/ मू./5/1/7/290 प्राप्य साध्यम- प्राप्य वा हेतोः प्राप्त्याविशिष्टतत्त्वाप्राप्त्यासाधकत्वाच्च प्राप्त्य-प्राप्तिसमौ ।7। = हेतु को साध्य के साथ जो प्राप्ति करके प्रत्यवस्थान दिया जाता है, वह प्राप्ति समा जाति है । और अप्राप्ति करके जो फिर प्रत्यवस्थान दिया जाता है, वह अप्राप्ति समा जाति है । (दृष्टांत- जैसे कि ‘पर्वतो वह्निमान् धूमात्’ इत्यादि समीचीन हेतु का वादी द्वारा कथन किये जा चुकने पर प्रतिवादी दोष उठाता है कि यह हेतु क्या साध्य को प्राप्त होकर साध्य की सिद्धि करावेगा क्या अन्य प्रकार से भी । ... साध्य और हेतु जब दोनों एक ही स्थान में प्राप्त हो रहे हैं, तो गाय के डेरे और सीधे सींग के समान भला उनमें से एक को हेतुपना और दूसरे को साध्यपना कैसे युक्त हो सकता है ।... अप्राप्तिसमा का उदाहरण यों है कि वादी का हेतु यदि साध्य को नहीं प्राप्त होकर साध्य का साधक होगा तब तो सभी हेतु प्रकृत साध्य के साधन बन बैठेंगे अथवा वह प्रकृत हेतु अकेला ही सभी साध्य को साध्य डालेगा ( श्लोकवार्तिक 4/ न्या./353-358/485 में इस पर चर्चा) ।