पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 58: Difference between revisions
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<p>ण कुणदि अत्ता किंचिवि मुत्ता अण्णं सगं भावं ॥65॥</p> | <p>ण कुणदि अत्ता किंचिवि मुत्ता अण्णं सगं भावं ॥65॥</p> | ||
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Latest revision as of 10:55, 21 August 2021
भावों जदि कम्मकदो आदा कम्मस्स होदि किह कत्ता । (58)
ण कुणदि अत्ता किंचिवि मुत्ता अण्णं सगं भावं ॥65॥