पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 23 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
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<p>अब यहाँ पंचास्तिकाय के प्रकरण में अस्ति-काय-रूप से अनुक्त होने पर भी सामर्थ्य से प्राप्त काल का प्रतिपादन करते हैं--</p> | <p>अब यहाँ पंचास्तिकाय के प्रकरण में अस्ति-काय-रूप से अनुक्त होने पर भी सामर्थ्य से प्राप्त काल का प्रतिपादन करते हैं--</p> | ||
<p><span class="AnvayArth">सब्भाव सहावाणं जीवाणं तहय पोग्गलाणं च</span> सद्भाव अर्थात् सत्ता, वही है स्वभाव या स्वरूप जिनका वे सद्भाव स्वभाव; उन सद्भाव स्वभावी जीव-पुद्गलों के अथवा सद्भाव इसके द्वारा धर्म, अधर्म, आकाश का ग्रहण होता है । <span class="AnvayArth">परियट्टणसंभूदो</span> परिवर्तनसंभूत- परिवर्तन अर्थात् नवीन-पुरानी दशा रूप से परिणमन् वह परिवर्तन जिससे होता है, वह परिवर्तन संभूत काल कालाणुरूप द्रव्यकाल <span class="AnvayArth">णियमेण</span> नियम से <span class="AnvayArth">पण्णत्तो</span> कहा गया है। किनके द्वारा कहा गया है? सर्वज्ञों द्वारा कहा गया है। तब फिर पातनिका से पंचास्तिकाय का व्याख्यान किये जाने पर नहीं कहे जाने वाले परमार्थ काल का भी अर्थापन्नत्व (सामर्थ्य से ग्रहण करना) कहा है, वह कैसे घटित होता है? प्रश्न का उत्तर देते हैं -- पंचास्तिकाय परिणामी हैं, परिणाम कार्य है तथा कार्य कारण की अपेक्षा रखता है और वह कारण द्रव्यों की परिणत्ति में निमित्तभूत कालाणुरूप द्रव्यकाल है। -इस युक्ति से / सामर्थ्य से अर्थापन्नत्व द्योतित किया / बताया है ।</p> | <p><span class="AnvayArth">[सब्भाव सहावाणं जीवाणं तहय पोग्गलाणं च]</span> सद्भाव अर्थात् सत्ता, वही है स्वभाव या स्वरूप जिनका वे सद्भाव स्वभाव; उन सद्भाव स्वभावी जीव-पुद्गलों के अथवा सद्भाव इसके द्वारा धर्म, अधर्म, आकाश का ग्रहण होता है । <span class="AnvayArth">[परियट्टणसंभूदो]</span> परिवर्तनसंभूत- परिवर्तन अर्थात् नवीन-पुरानी दशा रूप से परिणमन् वह परिवर्तन जिससे होता है, वह परिवर्तन संभूत काल कालाणुरूप द्रव्यकाल <span class="AnvayArth">[णियमेण]</span> नियम से <span class="AnvayArth">[पण्णत्तो]</span> कहा गया है। किनके द्वारा कहा गया है? सर्वज्ञों द्वारा कहा गया है। तब फिर पातनिका से पंचास्तिकाय का व्याख्यान किये जाने पर नहीं कहे जाने वाले परमार्थ काल का भी अर्थापन्नत्व (सामर्थ्य से ग्रहण करना) कहा है, वह कैसे घटित होता है? प्रश्न का उत्तर देते हैं -- पंचास्तिकाय परिणामी हैं, परिणाम कार्य है तथा कार्य कारण की अपेक्षा रखता है और वह कारण द्रव्यों की परिणत्ति में निमित्तभूत कालाणुरूप द्रव्यकाल है। -इस युक्ति से / सामर्थ्य से अर्थापन्नत्व द्योतित किया / बताया है ।</p> | ||
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<p>विशेष यह है कि पुद्गल परमाणु द्वारा उत्पन्न / व्यक्त होनेवाला वह समयरूप सूक्ष्म काल ही निश्चय-काल कहलाता है। घटिका / घड़ी आदि रूप स्थूल काल व्यवहारकाल कहलाता है और वह घटिका आदि के निमित्तभूत पानी के बर्तन, वस्त्र, काष्ठ, पुरुष के हस्त-व्यापार रूप क्रिया आदि विशेष से उत्पन्न होता है, द्रव्य-काल से नहीं-ऐसा पूर्वपक्ष (प्रश्न) होने पर परिहार करते हैं -- यद्यपि समयरूप सूक्ष्म व्यवहार काल निमित्तभूत पुद्गल परमाणु द्वारा व्यक्त होता है, प्रगट किया जाता है; ज्ञात होता है, घड़ी आदि रूप स्थूल व्यवहारकाल घड़ी आदि के निमित्त भूत पानी पात्र, वस्त्र आदि द्रव्य विशेष द्वारा ज्ञात होता है; तथापि उस घड़ी आदि पर्यायरूप व्यवहारकाल का कालाणुरूप द्रव्य काल ही उपादान कारण है ।</p> | <p>विशेष यह है कि पुद्गल परमाणु द्वारा उत्पन्न / व्यक्त होनेवाला वह समयरूप सूक्ष्म काल ही निश्चय-काल कहलाता है। घटिका / घड़ी आदि रूप स्थूल काल व्यवहारकाल कहलाता है और वह घटिका आदि के निमित्तभूत पानी के बर्तन, वस्त्र, काष्ठ, पुरुष के हस्त-व्यापार रूप क्रिया आदि विशेष से उत्पन्न होता है, द्रव्य-काल से नहीं-ऐसा पूर्वपक्ष (प्रश्न) होने पर परिहार करते हैं -- यद्यपि समयरूप सूक्ष्म व्यवहार काल निमित्तभूत पुद्गल परमाणु द्वारा व्यक्त होता है, प्रगट किया जाता है; ज्ञात होता है, घड़ी आदि रूप स्थूल व्यवहारकाल घड़ी आदि के निमित्त भूत पानी पात्र, वस्त्र आदि द्रव्य विशेष द्वारा ज्ञात होता है; तथापि उस घड़ी आदि पर्यायरूप व्यवहारकाल का कालाणुरूप द्रव्य काल ही उपादान कारण है ।</p> |
Revision as of 17:06, 24 August 2021
अब यहाँ पंचास्तिकाय के प्रकरण में अस्ति-काय-रूप से अनुक्त होने पर भी सामर्थ्य से प्राप्त काल का प्रतिपादन करते हैं--
[सब्भाव सहावाणं जीवाणं तहय पोग्गलाणं च] सद्भाव अर्थात् सत्ता, वही है स्वभाव या स्वरूप जिनका वे सद्भाव स्वभाव; उन सद्भाव स्वभावी जीव-पुद्गलों के अथवा सद्भाव इसके द्वारा धर्म, अधर्म, आकाश का ग्रहण होता है । [परियट्टणसंभूदो] परिवर्तनसंभूत- परिवर्तन अर्थात् नवीन-पुरानी दशा रूप से परिणमन् वह परिवर्तन जिससे होता है, वह परिवर्तन संभूत काल कालाणुरूप द्रव्यकाल [णियमेण] नियम से [पण्णत्तो] कहा गया है। किनके द्वारा कहा गया है? सर्वज्ञों द्वारा कहा गया है। तब फिर पातनिका से पंचास्तिकाय का व्याख्यान किये जाने पर नहीं कहे जाने वाले परमार्थ काल का भी अर्थापन्नत्व (सामर्थ्य से ग्रहण करना) कहा है, वह कैसे घटित होता है? प्रश्न का उत्तर देते हैं -- पंचास्तिकाय परिणामी हैं, परिणाम कार्य है तथा कार्य कारण की अपेक्षा रखता है और वह कारण द्रव्यों की परिणत्ति में निमित्तभूत कालाणुरूप द्रव्यकाल है। -इस युक्ति से / सामर्थ्य से अर्थापन्नत्व द्योतित किया / बताया है ।
विशेष यह है कि पुद्गल परमाणु द्वारा उत्पन्न / व्यक्त होनेवाला वह समयरूप सूक्ष्म काल ही निश्चय-काल कहलाता है। घटिका / घड़ी आदि रूप स्थूल काल व्यवहारकाल कहलाता है और वह घटिका आदि के निमित्तभूत पानी के बर्तन, वस्त्र, काष्ठ, पुरुष के हस्त-व्यापार रूप क्रिया आदि विशेष से उत्पन्न होता है, द्रव्य-काल से नहीं-ऐसा पूर्वपक्ष (प्रश्न) होने पर परिहार करते हैं -- यद्यपि समयरूप सूक्ष्म व्यवहार काल निमित्तभूत पुद्गल परमाणु द्वारा व्यक्त होता है, प्रगट किया जाता है; ज्ञात होता है, घड़ी आदि रूप स्थूल व्यवहारकाल घड़ी आदि के निमित्त भूत पानी पात्र, वस्त्र आदि द्रव्य विशेष द्वारा ज्ञात होता है; तथापि उस घड़ी आदि पर्यायरूप व्यवहारकाल का कालाणुरूप द्रव्य काल ही उपादान कारण है ।
प्रश्न - वही उपादान कारण कैसे है?
उत्तर - 'उपादान कारण के समान कार्य होता है' - ऐसा वचन होने से कालाणुरूप द्रव्य काल ही उसका उपादान कारण है । यह किसके समान है ? यदि ऐसा प्रश्न हो तो कहते हैं --
- कुंभकार, चक्र, चीवर आदि बहिरंग निमित्त से उत्पन्न घटकार्य का मिट्टी पिण्ड रूप उपादान कारण के समान होने से;
- कुविंद (जुलाहा), तुरी, वेम, सलाका आदि बहिरंग निमित्त से उत्पन्न वस्त्ररूप कार्य का तन्तु-समूह-रूप उपादान कारण के समान होने से;
- इंर्धन, अग्नि आदि बहिरंग निमित्त से उत्पन्न शालि आदि सम्बन्धी भात-कार्य का शालि आदि चावलरूप उपादान कारण के समान होने से;
- कर्मोदय निमित्त से उत्पन्न मनुष्य, नारक आदि पर्यायरूप कार्य का जीवरूप उपादान कारण के समान होने से