पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 36 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
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<p>अब 'जीव का अभाव मुक्ति है' इसप्रकार के सौगतमत का विशेषरूप से निराकरण करते हैं --</p> | <p>अब 'जीव का अभाव मुक्ति है' इसप्रकार के सौगतमत का विशेषरूप से निराकरण करते हैं --</p> | ||
<p><span class="AnvayArth">सस्सदमधमुच्छेद</span> सिद्ध अवस्था में <ul><li>टंकोत्कीर्ण ज्ञायक एक रूप द्रव्य की अपेक्षा अविनश्वर होने से <span class="DarkFont">शाश्वत</span> स्वरूप है तथा <span class="AnvayArth">अध</span> अहो! पर्यायरूप से अगुरुलघुगुण की षट्स्थानगत हानि-वृद्धि की अपेक्षा <span class="DarkFont">उच्छेद</span> है । <li><span class="AnvayArth">भव्वमभव्वं च</span> निर्विकार चिदानन्द एक स्वभावमय परिणाम से होना, परिणमना <span class="DarkFont">भव्यत्व है</span>; अतीत (नष्ट हो गए) मिथ्यात्व-रागादि विभाव-परिणाम से नहीं होना, नहीं परिणमना <span class="DarkFont">अभव्यत्व</span> है । <li><span class="AnvayArth">सुण्णमिदरं च</span> स्व-शुद्धात्म-द्रव्य से विलक्षण पर-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव चतुष्टय से <span class="DarkFont">नास्तित्व</span> (शून्यता) है; निज परमात्मा सम्बन्धी स्व द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव रूप से इतर अर्थात् <span class="DarkFont">अशून्यता</span> है । <li><span class="AnvayArth">विण्णाणमविण्णाणं</span> समस्त द्रव्य-गुण-पर्यायों को एक समय में प्रकाशित करने में समर्थ सकल-विमल केवल-ज्ञान-गुण से <span class="DarkFont">विज्ञान</span> है; नष्ट हुए मति ज्ञानादि छद्मस्थ ज्ञान द्वारा परिज्ञान (रहित) हो जाने के कारण <span class="DarkFont">अविज्ञान</span> हैं । </ul><span class="AnvayArth">णवि जुज्जदि असदि सब्भावे</span> मोक्ष में जीव का सद्भाव विद्यमान न होने पर नित्यत्व आदि आठ गुण-स्वभाव घटित नहीं हो सकते; अत: उनके अस्तित्व से ही मोक्ष में जीव का सद्भाव जाना जाता है । यहाँ वह ही उपादेय है -- यह भावार्थ है ॥३८॥</p> | <p><span class="AnvayArth">[सस्सदमधमुच्छेद]</span> सिद्ध अवस्था में <ul><li>टंकोत्कीर्ण ज्ञायक एक रूप द्रव्य की अपेक्षा अविनश्वर होने से <span class="DarkFont">शाश्वत</span> स्वरूप है तथा <span class="AnvayArth">[अध]</span> अहो! पर्यायरूप से अगुरुलघुगुण की षट्स्थानगत हानि-वृद्धि की अपेक्षा <span class="DarkFont">उच्छेद</span> है । <li><span class="AnvayArth">[भव्वमभव्वं च]</span> निर्विकार चिदानन्द एक स्वभावमय परिणाम से होना, परिणमना <span class="DarkFont">भव्यत्व है</span>; अतीत (नष्ट हो गए) मिथ्यात्व-रागादि विभाव-परिणाम से नहीं होना, नहीं परिणमना <span class="DarkFont">अभव्यत्व</span> है । <li><span class="AnvayArth">[सुण्णमिदरं च]</span> स्व-शुद्धात्म-द्रव्य से विलक्षण पर-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव चतुष्टय से <span class="DarkFont">नास्तित्व</span> (शून्यता) है; निज परमात्मा सम्बन्धी स्व द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव रूप से इतर अर्थात् <span class="DarkFont">अशून्यता</span> है । <li><span class="AnvayArth">[विण्णाणमविण्णाणं]</span> समस्त द्रव्य-गुण-पर्यायों को एक समय में प्रकाशित करने में समर्थ सकल-विमल केवल-ज्ञान-गुण से <span class="DarkFont">विज्ञान</span> है; नष्ट हुए मति ज्ञानादि छद्मस्थ ज्ञान द्वारा परिज्ञान (रहित) हो जाने के कारण <span class="DarkFont">अविज्ञान</span> हैं । </ul><span class="AnvayArth">[णवि जुज्जदि असदि सब्भावे]</span> मोक्ष में जीव का सद्भाव विद्यमान न होने पर नित्यत्व आदि आठ गुण-स्वभाव घटित नहीं हो सकते; अत: उनके अस्तित्व से ही मोक्ष में जीव का सद्भाव जाना जाता है । यहाँ वह ही उपादेय है -- यह भावार्थ है ॥३८॥</p> | ||
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<p>इसप्रकार भट्ट और चार्वाक मतानुसारी शिष्य के संदेह का नाश करने के लिए जीव के अमूर्तत्व व्याख्यान रूप से तीन गाथायें पूर्ण हुईं ।</p> | <p>इसप्रकार भट्ट और चार्वाक मतानुसारी शिष्य के संदेह का नाश करने के लिए जीव के अमूर्तत्व व्याख्यान रूप से तीन गाथायें पूर्ण हुईं ।</p> | ||
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Revision as of 17:06, 24 August 2021
अब 'जीव का अभाव मुक्ति है' इसप्रकार के सौगतमत का विशेषरूप से निराकरण करते हैं --
[सस्सदमधमुच्छेद] सिद्ध अवस्था में
- टंकोत्कीर्ण ज्ञायक एक रूप द्रव्य की अपेक्षा अविनश्वर होने से शाश्वत स्वरूप है तथा [अध] अहो! पर्यायरूप से अगुरुलघुगुण की षट्स्थानगत हानि-वृद्धि की अपेक्षा उच्छेद है ।
- [भव्वमभव्वं च] निर्विकार चिदानन्द एक स्वभावमय परिणाम से होना, परिणमना भव्यत्व है; अतीत (नष्ट हो गए) मिथ्यात्व-रागादि विभाव-परिणाम से नहीं होना, नहीं परिणमना अभव्यत्व है ।
- [सुण्णमिदरं च] स्व-शुद्धात्म-द्रव्य से विलक्षण पर-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव चतुष्टय से नास्तित्व (शून्यता) है; निज परमात्मा सम्बन्धी स्व द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव रूप से इतर अर्थात् अशून्यता है ।
- [विण्णाणमविण्णाणं] समस्त द्रव्य-गुण-पर्यायों को एक समय में प्रकाशित करने में समर्थ सकल-विमल केवल-ज्ञान-गुण से विज्ञान है; नष्ट हुए मति ज्ञानादि छद्मस्थ ज्ञान द्वारा परिज्ञान (रहित) हो जाने के कारण अविज्ञान हैं ।
इसप्रकार भट्ट और चार्वाक मतानुसारी शिष्य के संदेह का नाश करने के लिए जीव के अमूर्तत्व व्याख्यान रूप से तीन गाथायें पूर्ण हुईं ।