पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 39 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
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<p>इससे आगे उन्नीस गाथाओं पर्यंत उपयोग अधिकार प्रारंभ होता है। वह इसप्रकार- अब आत्मा के दो प्रकार का उपयोग दिखाते हैं --</p> | <p>इससे आगे उन्नीस गाथाओं पर्यंत उपयोग अधिकार प्रारंभ होता है। वह इसप्रकार- अब आत्मा के दो प्रकार का उपयोग दिखाते हैं --</p> | ||
<p><span class="AnvayArth">उवओगो</span> आत्मा का चैतन्यानुविधायी परिणाम उपयोग है; जो चैतन्य के साथ रहता है, अन्वय रूप से परिणमित होता है, अथवा पदार्थों की जानकारी के समय 'यह पट है' इत्यादि पदार्थों को जानने रूप से व्यापार करता है, वह चैतन्यानुविधायी है । <span class="AnvayArth">खलु</span> वास्तव में <span class="AnvayArth">दुविहो</span> वह दो प्रकार का है ।</p> | <p><span class="AnvayArth">[उवओगो]</span> आत्मा का चैतन्यानुविधायी परिणाम उपयोग है; जो चैतन्य के साथ रहता है, अन्वय रूप से परिणमित होता है, अथवा पदार्थों की जानकारी के समय 'यह पट है' इत्यादि पदार्थों को जानने रूप से व्यापार करता है, वह चैतन्यानुविधायी है । <span class="AnvayArth">[खलु]</span> वास्तव में <span class="AnvayArth">[दुविहो]</span> वह दो प्रकार का है ।</p> | ||
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<p>प्रश्न - वह दो प्रकार का कैसे है? </p> | <p>प्रश्न - वह दो प्रकार का कैसे है? </p> | ||
<p>उत्तर - <span class="AnvayArth">णाणेण य दंसणेण संजुत्तो</span> सविकल्प रूप ज्ञान है, निर्विकल्परूप दर्शन है, उन दोनों से संयुक्त है । <span class="AnvayArth">जीवस्स सव्वकालं अणण्णभूदं वियाणाहि</span> संज्ञा, लक्षण, प्रयोजन आदि की अपेक्षा भेद होने पर भी वह उपयोग जीव का सम्बंधी होने से (जीव के साथ उसका नित्य-तादात्म्य सम्बन्ध या गुण-गुणी सम्बन्ध होने से), सर्व-काल उसे प्रदेशों की अपेक्षा अभिन्न जानो ॥४०॥</p> | <p>उत्तर - <span class="AnvayArth">[णाणेण य दंसणेण संजुत्तो]</span> सविकल्प रूप ज्ञान है, निर्विकल्परूप दर्शन है, उन दोनों से संयुक्त है । <span class="AnvayArth">[जीवस्स सव्वकालं अणण्णभूदं वियाणाहि]</span> संज्ञा, लक्षण, प्रयोजन आदि की अपेक्षा भेद होने पर भी वह उपयोग जीव का सम्बंधी होने से (जीव के साथ उसका नित्य-तादात्म्य सम्बन्ध या गुण-गुणी सम्बन्ध होने से), सर्व-काल उसे प्रदेशों की अपेक्षा अभिन्न जानो ॥४०॥</p> | ||
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Revision as of 17:06, 24 August 2021
इससे आगे उन्नीस गाथाओं पर्यंत उपयोग अधिकार प्रारंभ होता है। वह इसप्रकार- अब आत्मा के दो प्रकार का उपयोग दिखाते हैं --
[उवओगो] आत्मा का चैतन्यानुविधायी परिणाम उपयोग है; जो चैतन्य के साथ रहता है, अन्वय रूप से परिणमित होता है, अथवा पदार्थों की जानकारी के समय 'यह पट है' इत्यादि पदार्थों को जानने रूप से व्यापार करता है, वह चैतन्यानुविधायी है । [खलु] वास्तव में [दुविहो] वह दो प्रकार का है ।
प्रश्न - वह दो प्रकार का कैसे है?
उत्तर - [णाणेण य दंसणेण संजुत्तो] सविकल्प रूप ज्ञान है, निर्विकल्परूप दर्शन है, उन दोनों से संयुक्त है । [जीवस्स सव्वकालं अणण्णभूदं वियाणाहि] संज्ञा, लक्षण, प्रयोजन आदि की अपेक्षा भेद होने पर भी वह उपयोग जीव का सम्बंधी होने से (जीव के साथ उसका नित्य-तादात्म्य सम्बन्ध या गुण-गुणी सम्बन्ध होने से), सर्व-काल उसे प्रदेशों की अपेक्षा अभिन्न जानो ॥४०॥
इसप्रकार ज्ञान-दर्शन दो उपयोग की सूचना रूप से एक गाथा पूर्ण हुई ।