पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 77 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
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<p><span class="AnvayArth">आदेसमत्तमुत्तो</span> आदेश मात्र मूर्त है; आदेश मात्र से संज्ञादि भेद से ही परमाणु के मूर्तत्व को निबन्धन-भूत / कारण-भूत वर्णादि गुण भेदित होते हैं, पृथक् किये जाते हैं; सत्ता और प्रदेश भेद की अपेक्षा पृथक् नहीं किए जाते हैं । वास्तव में तो जो परमाणु का आदि-मध्य-अंत-भूत प्रदेश है, वही रुपादि गुणों का भी है । अथवा 'मूर्त ' ऐसा कहा जाता है, परन्तु दृष्टि से दिखाई नहीं देता, उसकारण आदेशमात्र से मूर्त है । <span class="AnvayArth">धाउचउक्कस्स कारणं जो दु</span> निश्चय से शुद्ध-बुद्ध एक स्वभावी होने पर भी पृथ्वी आदि जीवों द्वारा व्यवहार से अनादि कर्मोदय वश से जो पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु-रूप धातु चतुष्क नामक शरीर ग्रहण किए जाते हैं, वे उनमें रहते हैं, उनके और अन्य के तथा जीव के द्वारा नहीं ग्रहण किए गए शरीरों के भी हेतु होने से, निमित्त होने के कारण धातु चतुष्क का कारण है जो, <span class="AnvayArth">सो णेओ परमाणु</span> जो पूर्वकथित एक ही परमाणु कालान्तर में पृथ्वी आदि धातु चतुष्क-रूप से परिणमित होता है, वह परमाणु है -- ऐसा जानो । <span class="AnvayArth">परिणामगुणो</span> औदयिक आदि चार भाव से रहित होने के कारण पारिणामिक गुणवाला है । और किस विशेषता वाला है ? <span class="AnvayArth">सयमसद्दो</span> एक प्रदेशी होने के कारण, अनन्त परमाणुओं का पिण्ड कर व्यक्त होने-वाले लक्षण-रूप शब्द पर्याय के साथ विलक्षण होने से स्वयं व्यक्ति-रूप से अशब्द है -- ऐसा सूत्रार्थ है ॥८५॥</p> | <p><span class="AnvayArth">[आदेसमत्तमुत्तो]</span> आदेश मात्र मूर्त है; आदेश मात्र से संज्ञादि भेद से ही परमाणु के मूर्तत्व को निबन्धन-भूत / कारण-भूत वर्णादि गुण भेदित होते हैं, पृथक् किये जाते हैं; सत्ता और प्रदेश भेद की अपेक्षा पृथक् नहीं किए जाते हैं । वास्तव में तो जो परमाणु का आदि-मध्य-अंत-भूत प्रदेश है, वही रुपादि गुणों का भी है । अथवा 'मूर्त ' ऐसा कहा जाता है, परन्तु दृष्टि से दिखाई नहीं देता, उसकारण आदेशमात्र से मूर्त है । <span class="AnvayArth">[धाउचउक्कस्स कारणं जो दु]</span> निश्चय से शुद्ध-बुद्ध एक स्वभावी होने पर भी पृथ्वी आदि जीवों द्वारा व्यवहार से अनादि कर्मोदय वश से जो पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु-रूप धातु चतुष्क नामक शरीर ग्रहण किए जाते हैं, वे उनमें रहते हैं, उनके और अन्य के तथा जीव के द्वारा नहीं ग्रहण किए गए शरीरों के भी हेतु होने से, निमित्त होने के कारण धातु चतुष्क का कारण है जो, <span class="AnvayArth">[सो णेओ परमाणु]</span> जो पूर्वकथित एक ही परमाणु कालान्तर में पृथ्वी आदि धातु चतुष्क-रूप से परिणमित होता है, वह परमाणु है -- ऐसा जानो । <span class="AnvayArth">[परिणामगुणो]</span> औदयिक आदि चार भाव से रहित होने के कारण पारिणामिक गुणवाला है । और किस विशेषता वाला है ? <span class="AnvayArth">[सयमसद्दो]</span> एक प्रदेशी होने के कारण, अनन्त परमाणुओं का पिण्ड कर व्यक्त होने-वाले लक्षण-रूप शब्द पर्याय के साथ विलक्षण होने से स्वयं व्यक्ति-रूप से अशब्द है -- ऐसा सूत्रार्थ है ॥८५॥</p> | ||
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<p>इस प्रकार परमाणु के पृथ्वी आदि जाति-भेद के निराकरण-कथन की अपेक्षा दूसरी गाथा पूर्ण हुई ।</p> | <p>इस प्रकार परमाणु के पृथ्वी आदि जाति-भेद के निराकरण-कथन की अपेक्षा दूसरी गाथा पूर्ण हुई ।</p> | ||
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Revision as of 17:06, 24 August 2021
[आदेसमत्तमुत्तो] आदेश मात्र मूर्त है; आदेश मात्र से संज्ञादि भेद से ही परमाणु के मूर्तत्व को निबन्धन-भूत / कारण-भूत वर्णादि गुण भेदित होते हैं, पृथक् किये जाते हैं; सत्ता और प्रदेश भेद की अपेक्षा पृथक् नहीं किए जाते हैं । वास्तव में तो जो परमाणु का आदि-मध्य-अंत-भूत प्रदेश है, वही रुपादि गुणों का भी है । अथवा 'मूर्त ' ऐसा कहा जाता है, परन्तु दृष्टि से दिखाई नहीं देता, उसकारण आदेशमात्र से मूर्त है । [धाउचउक्कस्स कारणं जो दु] निश्चय से शुद्ध-बुद्ध एक स्वभावी होने पर भी पृथ्वी आदि जीवों द्वारा व्यवहार से अनादि कर्मोदय वश से जो पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु-रूप धातु चतुष्क नामक शरीर ग्रहण किए जाते हैं, वे उनमें रहते हैं, उनके और अन्य के तथा जीव के द्वारा नहीं ग्रहण किए गए शरीरों के भी हेतु होने से, निमित्त होने के कारण धातु चतुष्क का कारण है जो, [सो णेओ परमाणु] जो पूर्वकथित एक ही परमाणु कालान्तर में पृथ्वी आदि धातु चतुष्क-रूप से परिणमित होता है, वह परमाणु है -- ऐसा जानो । [परिणामगुणो] औदयिक आदि चार भाव से रहित होने के कारण पारिणामिक गुणवाला है । और किस विशेषता वाला है ? [सयमसद्दो] एक प्रदेशी होने के कारण, अनन्त परमाणुओं का पिण्ड कर व्यक्त होने-वाले लक्षण-रूप शब्द पर्याय के साथ विलक्षण होने से स्वयं व्यक्ति-रूप से अशब्द है -- ऐसा सूत्रार्थ है ॥८५॥
इस प्रकार परमाणु के पृथ्वी आदि जाति-भेद के निराकरण-कथन की अपेक्षा दूसरी गाथा पूर्ण हुई ।