पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 37 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
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<p>अब तीन प्रकार की चेतना के व्याख्यान का प्रतिपादन करते हैं --</p> | <p>अब तीन प्रकार की चेतना के व्याख्यान का प्रतिपादन करते हैं --</p> | ||
<p><span class=" | <p><span class="SansWord">[कम्माणं फलमेक्को चेदगभावेण वेदयदि जीवरासी]</span> निर्मल शुद्धात्मानुभूति के अभाव से उपार्जित प्रकृष्टतर मोह से मलीमस चेतक-भाव द्वारा प्रच्छादित सामर्थ्य-वाली होती हुई, स्व सामर्थ्य को प्रगट नहीं करती हुई, एक जीवराशि कर्मफल का वेदन करती है; <span class="SansWord">[एक्को कज्जं तु]</span> एक उसी चेतन भाव से सामर्थ्य प्रगट हो जाने के कारण इच्छापूर्वक इष्ट-अनिष्ट विकल्परूप कर्म / कार्य का वेदन करती है / अनुभव करती है; <span class="SansWord">[णाणमथमेक्को]</span> तथा एक जीवराशि उसी चेतक भाव से विशुद्ध शुद्धात्मानुभूति की भावना (तद्रूप परिणमन) द्वारा कर्मकलंक को नष्ट कर देने के कारण केवलज्ञान का अनुभव करती है । कितनी संख्या से सहित उस पूर्वोक्त चेतकभाव द्वारा अनुभव करती है ? <span class="SansWord">[तिविहेण]</span> कर्मफल, कर्म / कार्य और ज्ञानरूप से तीनप्रकार के चेतकभाव द्वारा अनुभव करती है ॥३८॥</p> | ||
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Latest revision as of 13:16, 30 June 2023
अब तीन प्रकार की चेतना के व्याख्यान का प्रतिपादन करते हैं --
[कम्माणं फलमेक्को चेदगभावेण वेदयदि जीवरासी] निर्मल शुद्धात्मानुभूति के अभाव से उपार्जित प्रकृष्टतर मोह से मलीमस चेतक-भाव द्वारा प्रच्छादित सामर्थ्य-वाली होती हुई, स्व सामर्थ्य को प्रगट नहीं करती हुई, एक जीवराशि कर्मफल का वेदन करती है; [एक्को कज्जं तु] एक उसी चेतन भाव से सामर्थ्य प्रगट हो जाने के कारण इच्छापूर्वक इष्ट-अनिष्ट विकल्परूप कर्म / कार्य का वेदन करती है / अनुभव करती है; [णाणमथमेक्को] तथा एक जीवराशि उसी चेतक भाव से विशुद्ध शुद्धात्मानुभूति की भावना (तद्रूप परिणमन) द्वारा कर्मकलंक को नष्ट कर देने के कारण केवलज्ञान का अनुभव करती है । कितनी संख्या से सहित उस पूर्वोक्त चेतकभाव द्वारा अनुभव करती है ? [तिविहेण] कर्मफल, कर्म / कार्य और ज्ञानरूप से तीनप्रकार के चेतकभाव द्वारा अनुभव करती है ॥३८॥