कायगुप्ति: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
| | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
<span class="HindiText">देखें [[ गुप्ति ]]। | <span class="GRef"> ज्ञानार्णव/18 </span><span class="SanskritText"> स्थिरीकृतशरीरस्य पर्यंकसंस्थितस्य वा। परीषहप्रपातेऽपि कायगुप्तिर्मता मुने:।18।</span>=<span class="HindiText">स्थिर किया है शरीर जिसने तथा परिषह आ जाने पर भी अपने पर्यंकासन से ही स्थिर रहे, किंतु डिगे नहीं, उस मुनि के ही कायगुप्ति मानी गयी है।18। </span> | ||
<span class="HindiText">और देखें [[ गुप्ति ]]।</span> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 10: | Line 12: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: क]] | [[Category: क]] | ||
Line 25: | Line 27: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: क]] | [[Category: क]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 13:45, 27 February 2023
सिद्धांतकोष से
ज्ञानार्णव/18 स्थिरीकृतशरीरस्य पर्यंकसंस्थितस्य वा। परीषहप्रपातेऽपि कायगुप्तिर्मता मुने:।18।=स्थिर किया है शरीर जिसने तथा परिषह आ जाने पर भी अपने पर्यंकासन से ही स्थिर रहे, किंतु डिगे नहीं, उस मुनि के ही कायगुप्ति मानी गयी है।18।
और देखें गुप्ति ।
पुराणकोष से
किसी के चित्र को देखकर मन में विकार का उत्पन्न न होना, शरीर की प्रवृत्ति को नियमित रखना । महापुराण 20.161, पांडवपुराण 9.90