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1. सानत्कुमार स्वर्ग का प्रथम पटल व इंद्रक - देखें [[ स्वर्ग#5.3 | स्वर्ग - 5.3]]। | <p class="HindiText">1. सानत्कुमार स्वर्ग का प्रथम पटल व इंद्रक - देखें [[ स्वर्ग#5.3 | स्वर्ग - 5.3]]। </p> | ||
2. पूर्व विदेहस्थ एक वक्षार, उसका कूट व रक्षक देव - देखें [[ लोक#5.3 | लोक - 5.3]]। | <p class="HindiText">2. पूर्व विदेहस्थ एक वक्षार, उसका कूट व रक्षक देव - देखें [[ लोक#5.3 | लोक - 5.3]]। </p> | ||
3. पूर्व विदेहस्थ वैश्रवण वक्षारका एक कूट व उसका रक्षक देव - देखें [[ लोक#5.4 | लोक - 5.4]]। | <p class="HindiText">3. पूर्व विदेहस्थ वैश्रवण वक्षारका एक कूट व उसका रक्षक देव - देखें [[ लोक#5.4 | लोक - 5.4]]। </p> | ||
4. रुचक पर्वतस्थ एक कूट - देखें [[ लोक#5.13 | लोक - 5.13]]। | <p class="HindiText">4. रुचक पर्वतस्थ एक कूट - देखें [[ लोक#5.13 | लोक - 5.13]]। </p> | ||
5. मानुषोत्तर पर्वतस्थ एक कूट - देखें [[ लोक#5.10 | लोक - 5.10]]। | <p class="HindiText">5. मानुषोत्तर पर्वतस्थ एक कूट - देखें [[ लोक#5.10 | लोक - 5.10]]।</p> | ||
Revision as of 14:56, 7 December 2022
सिद्धांतकोष से
1. सानत्कुमार स्वर्ग का प्रथम पटल व इंद्रक - देखें स्वर्ग - 5.3।
2. पूर्व विदेहस्थ एक वक्षार, उसका कूट व रक्षक देव - देखें लोक - 5.3।
3. पूर्व विदेहस्थ वैश्रवण वक्षारका एक कूट व उसका रक्षक देव - देखें लोक - 5.4।
4. रुचक पर्वतस्थ एक कूट - देखें लोक - 5.13।
5. मानुषोत्तर पर्वतस्थ एक कूट - देखें लोक - 5.10।
पुराणकोष से
(1) पूर्व विदेह क्षेत्र का एक वक्षार पर्वत । यह सीता नदी से निषद्य कुलाचल तक विस्तृत है । महापुराण 63. 201-203, हरिवंशपुराण 5.228-229
(2) सानत्कुमार और माहेंद्र कल्पों का प्रथम पटल और इंद्रक विमान । हरिवंशपुराण 6.48 दे9 सानत्कुमार
(3) रुचकवर पर्वत का सातवाँ कूट । यहाँ आनंदा देवी रहती है । हरिवंशपुराण 5.703 देखें रुचकवर
(4) प्रथम नरकभूमि रत्नप्रभा के खरभाग का दसवाँ पटल । हरिवंशपुराण 4.52-54 देखें खरभाग
(5) एक जनपद । तीर्थंकर नेमिनाथ विहार करते हुए यहाँ आये थे । हरिवंशपुराण 59.109-111
(6) सुमेरु पर्वत के पांडुक वन का एक भवन । इसकी चौड़ाई और परिधि पैंतालीस योजन है । हरिवंशपुराण 5.316, 319-322
(7) मध्यलोक के सोलहवें द्वीप और सागर के आगे असंख्यात द्वीपों और सागरों में पाँचवाँ द्वीप एवं सागर । हरिवंशपुराण 5.622-626
(8) आँखों का सौंदर्य-प्रसाधन । महापुराण 14.9