केवलदर्शन: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> देखें [[ | <span class="GRef">धवला 6/1,9-1,16/34/4 </span> <span class="SanskritText">तस्मादात्मा स्वपरावभासक इति निश्चेतव्यम् । तत्र स्वावभास: केवलदर्शनम्, परावभास: केवलज्ञानम् । तथा सति कथं केवलज्ञानदर्शनयो: साम्यमिति इति चेन्न, ज्ञेयप्रमाणज्ञानात्मकात्मानुभवस्य ज्ञानप्रमाणत्वाविरोधात् । </span>=<span class="HindiText">इसलिए (उपरोक्त व्याख्या के अनुसार) आत्मा ही (वास्तव में) स्व-पर अवभासक है, ऐसा निश्चय करना चाहिए। उसमें स्वप्रतिभास को '''केवल दर्शन''' कहते हैं और पर प्रतिभास को केवलज्ञान कहते हैं। ( <span class="GRef">कषायपाहुड़ 1/1-20/326/358/2</span> ); (<span class="GRef"> धवला 7/2,1,56/99/10 </span>) <strong>प्रश्न</strong>–उक्त प्रकार की व्यवस्था मानने पर केवलज्ञान और '''केवलदर्शन''' में समानता कैसे रह सकेगी ? <strong>उत्तर</strong>–नहीं, क्योंकि, ज्ञेयप्रमाण ज्ञानात्मक आत्मानुभव के ज्ञान को प्रमाण होने में कोई विरोध नहीं है। ( <span class="GRef">धवला 1/1,1,135/385/7</span> )</span> | ||
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Revision as of 17:43, 7 April 2023
धवला 6/1,9-1,16/34/4 तस्मादात्मा स्वपरावभासक इति निश्चेतव्यम् । तत्र स्वावभास: केवलदर्शनम्, परावभास: केवलज्ञानम् । तथा सति कथं केवलज्ञानदर्शनयो: साम्यमिति इति चेन्न, ज्ञेयप्रमाणज्ञानात्मकात्मानुभवस्य ज्ञानप्रमाणत्वाविरोधात् । =इसलिए (उपरोक्त व्याख्या के अनुसार) आत्मा ही (वास्तव में) स्व-पर अवभासक है, ऐसा निश्चय करना चाहिए। उसमें स्वप्रतिभास को केवल दर्शन कहते हैं और पर प्रतिभास को केवलज्ञान कहते हैं। ( कषायपाहुड़ 1/1-20/326/358/2 ); ( धवला 7/2,1,56/99/10 ) प्रश्न–उक्त प्रकार की व्यवस्था मानने पर केवलज्ञान और केवलदर्शन में समानता कैसे रह सकेगी ? उत्तर–नहीं, क्योंकि, ज्ञेयप्रमाण ज्ञानात्मक आत्मानुभव के ज्ञान को प्रमाण होने में कोई विरोध नहीं है। ( धवला 1/1,1,135/385/7 )
देखें दर्शन उपयोग