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| {{TirthankarInfo
| | <span class="HindiText"> (1) अवसर्पिणी काल के दु:षमा सुषमा नामक चतुर्थ काल में उत्पन्न शलाकापुरुष, छठें चक्रवर्ती एवं सत्रहवें तीर्थंकर [[ कुंथुनाथ ]]। </span></br><span class="HindiText">(2) एक प्रकार के जीव । <span class="GRef">महापुराण 64.1<span></br><span class="HindiText">(3) तीर्थंकर श्रेयांस के प्रथम गणधर । <span class="GRef"> महापुराण 57.44, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.347 </span></br><span class="HindiText">(4) तीर्थंकर अरनाथ के प्रथम गणधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 348 </span> |
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| | Tirthankar-Number = 17
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| | Tirthankar-Name = कुन्थुनाथ
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| | PurvManushyaBhav = सिंहरथ
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| | PurvManushyaBhavTitle = मण्डलेश्वर
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| | PurvManushyaBhavFather = विपुलवाहन
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| | PurvManushyaBhavCity = जम्बू वि.सुसीमा
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| | PurvDevBhav = सर्वार्थसि.
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| | BirthCity = हस्तनागपुर
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| | Chihn = छाग
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| | Yaksha = गन्धर्व
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| | Yakshini = महामानसी
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| | Father = सूरसेन
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| | Mother = श्रीकान्ता
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| | Vansh = कुरु
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| | GarbhDate = श्रावण कृष्ण 10
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| | Garbh-Nakshatra = कृत्तिका
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| | Garbh-Period = अन्तिम रात्रि
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| | BirthDate = वैशाख शुक्ल 1
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| | Birth-Nakshatra = कृत्तिका
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| | Birth-Yog = आग्नेय
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| | Height = 35 धनुष
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| | Color = स्वर्ण
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| | VairagyaReason = जातिस्मरण
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| | Diksha-Date = वैशाख शुक्ल 1
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| | Diksha-Nakshatra = कृत्तिका
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| | Diksha-Period = अपराह्न
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| | Diksha-Upvaas = तृतीय भक्त
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| | Diksha-Van = सहेतुक
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| | Diksha-Vruksha = तिलक
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| | Diksha-Sah-Dikshit = 1000
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| | Keval-Date = चैत्र शुक्ल 3
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| | Keval-Nakshatra = कृत्तिका
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| | Keval-Period = अपराह्न
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| | Keval-Place = हस्तनागपुर
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| | Keval-Forest = सहेतुक
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| | Keval-Vruksha = तिलक
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| | Samavasharan-Length = 4 योजन
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| | Yog-Nivrutti-Period = 1 मास पूर्व
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| | Nirvaan-Date = वैशाख शुक्ल 1
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| | Nirvaan-Nakshatra = कृत्तिका
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| | Nirvaan-Period = सायं
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| | Nirvaan-Place = सम्मेद
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| | Sah-Mukt = 1000
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| | Purvdhaari = 700
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| | Shikshak = 43150
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| | Avadhigyaani = 2500
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| | Kevali = 3200
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| | Vikriyadhaari = 5100
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| | Manahparyaygyaani = 3350
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| | Vaadi = 2000
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| | All-Rishi-Count = 60000
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| | Gandhar-Count = 35
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| | Ganadhar-Main = स्वयंभू
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| | Aaryika-Count = 60350
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| | Aaryika-Main = भाविता
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| | Shraavak-Count = 100000
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| | Shraavika-Count = 300000
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| | Life = 95000 वर्ष
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| | Kumaar-Period = 23750 वर्ष
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| | Raja-Vishesh = चक्रवर्ती
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| | Rajya-Duration = 23750+23750
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| | Chhadmath-Duration = 16 वर्ष
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| | Kevali-Kaal = 23734 वर्ष
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| | Janm-Gap = 1/2 पल्य+5000 वर्ष
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| | Keval-Gap = 1/4 पल्य–9999997250 वर्ष
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| | Nirvaan-Gap = 1/4 पल्य–1000 को. वर्ष
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| | Tirth-Kaal = 1/4 पल्य–9999997250 वर्ष
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| | Tirth-Gap = ❌
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| | Chakravarti = स्वयं
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| | Baldev = ❌
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| | Narayan = ❌
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| | Pratinarayan = ❌
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| | Rudra = ❌
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| | Shrota-Main = नारायण
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| }}
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| <span class="HindiText"> (1) अवसर्पिणी काल के दु:षमा सुषमा नामक चतुर्थ काल में उत्पन्न शलाकापुरुष, छठें चक्रवर्ती एवं सत्रहवें तीर्थंकर । ये सोलह स्वप्नपूर्वक कृत्ति का नक्षत्र में श्रावणकृष्णा दशमी की रात्रि के पिछले प्रहर में हस्तिनापुर के कौरववंशी एवं काश्यपगोत्री महाराज शूरसेन की रानी श्रीकांता के गर्भ में आये । वैशाख शुक्ल प्रतिपदा के दिन आग्नेय योग में इनका जन्म हुआ । क्षीरसागर के जल से अभिषेक करने के पश्चात् इंद्र ने इनका नाम कुंथु रखा । इनका जन्म तीर्थंकर शांतिनाथ के बाद आधा पल्य समय बीत जाने पर हुआ था । इनकी आयु पचानवें हजार वर्ष, शरीर की अवगाहना पैंतीस धनुष और कांति तप्त स्वर्ण के समान थी । कुमारकाल के तेईस हजार सात सी पचास वर्ष बीत जाने पर इनका राज्याभिषेक हुआ और इतना ही समय और निकल जाने पर इन्हें चक्रवर्तित्व मिला । राज्य-भोगों से विरक्त होकर इन्होंने पुत्र को राज्य दे दिया । ये विजया नामक पाल की में बैठकर सहेतुक वन में पहुँचे । वहाँ इन्होंने वेला (दो दिन का उपवास) किया । वैशाख शुक्ल प्रतिपदा के दिन सायंकाल के समय एक हजार राजाओं के साथ ये दीक्षित हुए । दीक्षित होते ही ये मन:पर्ययज्ञानी हो गये । इस समय कृत्ति का नक्षत्र था । इसी नक्षत्र मे 16 वर्ष तप करने के बाद तिलक वृक्ष के नीचे चैत्र शुक्ल तृतीया की सायं वेला में ये केवली हुए । इनके संघ में स्वयंभू आदि पैंतीस गणधर, साठ हजार मुनि, साठ हजार तीन सौ पचास आर्यिकाएँ, तीन लाख श्राविकाएँ और दो लाख श्रावक थे । एक मास की आयु शेष रहने पर ये सम्मेदगिरि आये । इन्होंने प्रतिमायोग धारण किया और वैशाख अमल प्रतिपदा के दिन रात्रि के पूर्व भाग में कृत्ति का नक्षत्र में निर्वाण प्राप्त किया । दूसरे पूर्वभव में ये वत्स देश की सुसीमा नगरी के राजा सिंहरथ थे । तपश्चर्या पूर्वक मरण होने से ये पहले पूर्वभव में सर्वार्थसिद्धि के अनुत्तर विमान में अहमिंद्र हुए । वहाँ से च्युत होकर इस पर्याय में आये और तीर्थंकर हुए । <span class="GRef"> महापुराण 2. 132, 64. 2-5, 10-15, 22-28, 36-54, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 5.215,223, 20.15-35, 53, 61-68, 87, 115, 121, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1.19, 45. 20, 60.154-198, 341-349, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 6.27,51 </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18. 101-109 </span></br><span class="HindiText">(2) एक प्रकार के जीव । मनुष्य 64.1</br><span class="HindiText">(3) तीर्थंकर श्रेयांस के प्रथम गणधर । मनुष्य 57.44, <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.347 </span></br><span class="HindiText">(4) तीर्थंकर अरनाथ के प्रथम गणधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 348 </span> | |
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