अंतरकृष्टि: Difference between revisions
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</span><span class="SanskritText">‘कृश्यत इति कृष्टि:</span>’<span class="HindiText"> समय-समय प्रति पूर्व स्पर्धक की जघन्य वर्गणा तैं भी अनंतगुणा घटता अनुभाग रूप जो वर्गणा ताका नाम कृष्टि है।<br> | |||
<span class="GRef"> क्षपणासार/494-500 भाषा</span>–एक प्रकार बँधता (बढ़ता) गुणाकार रूप जो अंतरकृष्टि, उनके समूह का नाम संग्रहकृष्टि है।494। कृष्टिनि कै अनुभाग विषै गुणाकार का प्रमाण यावत् एक प्रकार बढ़ता भया तावत् सो ही संग्रहकृष्टि कही। बहुरि जहाँ निचली कृष्टि तै ऊपरली कृष्टि का गुणाकार अन्य प्रकार भया तहाँ तै अन्य संग्रहकृष्टि कही है। प्रत्येक संग्रहकृष्टि के अंतर्गत प्रथम अंतरकृष्टि से अंतिम अंतरकृष्टि पर्यंत अनुभाग अनंत अनंतगुणा है। परंतु सर्वत्र इस अनंत गुणकार का प्रमाण समान है, इसे स्वस्थान गुणकार कहते हैं। प्रथम संग्रहकृष्टि के अंतिम अंतरकृष्टि से द्वितीय संग्रहकृष्टि की प्रथम अंतरकृष्टि का अनुभाग अनंतगुणा है। यह द्वितीय अनंत गुणकार पहले वाले अनंत गुणकार से अनंतगुणा है, यही परस्थान गुणकार है। यह द्वितीय संग्रहकृष्टि की अंतिम अंतरकृष्टि का अनुभाग भी उसकी इस प्रथम अंतरकृष्टि से अनंतगुणा है। इसी प्रकार आगे भी जानना।498। <p> | |||
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Revision as of 09:57, 4 November 2022
‘कृश्यत इति कृष्टि:’ समय-समय प्रति पूर्व स्पर्धक की जघन्य वर्गणा तैं भी अनंतगुणा घटता अनुभाग रूप जो वर्गणा ताका नाम कृष्टि है।
क्षपणासार/494-500 भाषा–एक प्रकार बँधता (बढ़ता) गुणाकार रूप जो अंतरकृष्टि, उनके समूह का नाम संग्रहकृष्टि है।494। कृष्टिनि कै अनुभाग विषै गुणाकार का प्रमाण यावत् एक प्रकार बढ़ता भया तावत् सो ही संग्रहकृष्टि कही। बहुरि जहाँ निचली कृष्टि तै ऊपरली कृष्टि का गुणाकार अन्य प्रकार भया तहाँ तै अन्य संग्रहकृष्टि कही है। प्रत्येक संग्रहकृष्टि के अंतर्गत प्रथम अंतरकृष्टि से अंतिम अंतरकृष्टि पर्यंत अनुभाग अनंत अनंतगुणा है। परंतु सर्वत्र इस अनंत गुणकार का प्रमाण समान है, इसे स्वस्थान गुणकार कहते हैं। प्रथम संग्रहकृष्टि के अंतिम अंतरकृष्टि से द्वितीय संग्रहकृष्टि की प्रथम अंतरकृष्टि का अनुभाग अनंतगुणा है। यह द्वितीय अनंत गुणकार पहले वाले अनंत गुणकार से अनंतगुणा है, यही परस्थान गुणकार है। यह द्वितीय संग्रहकृष्टि की अंतिम अंतरकृष्टि का अनुभाग भी उसकी इस प्रथम अंतरकृष्टि से अनंतगुणा है। इसी प्रकार आगे भी जानना।498।
- विशेष विस्तार के लिये देंखें कृष्टि ।