क्षायिक सम्यग्ज्ञान: Difference between revisions
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<span class="HindiText">देखें [[ सम्यग्ज्ञान ]]। | <span class="GRef"> राजवार्तिक/1/30/4,9/90-91 </span><span class="SanskritText"> एते हि मतिश्रुते सर्वकालभव्यभिचारिणी नारदपर्वतवत् ।(4/90/26)। एकस्मिन्नात्मन्येकं '''केवलज्ञानं क्षायिकत्वात्''' ।(10/91/24)। एकस्मिन्नात्मनि द्वे मतिश्रुते। क्वचित् त्रीणि मतिश्रुतावधिज्ञानानि, मतिश्रुतमन:पर्ययज्ञानानि वा क्वचिच्चत्वारि मतिश्रुतावधिमन:पर्ययज्ञानानि। न पंचैकस्मिन् युगपद् संभवंति।(9/91/17)।</span>= | ||
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<li><span class="HindiText"> एक को आदि लेकर युगपत् एक आत्मा में चार तक ज्ञान होने संभव है। </span></li> | |||
<li><span class="HindiText"> वह ऐसे–मति और श्रुत तो नारद और पर्वत की भाँति सदा एक साथ रहते हैं। एक आत्मा में एक ज्ञान हो तो केवलज्ञान होता है क्योंकि वह '''क्षायिक''' है, दो हों तो मतिश्रुत: तीन हों तो मति, श्रुत, अवधि, अथवा मति, श्रुत, मन:पर्यय चार हों तो मति श्रुत अवधि और मन:पर्यय। एक आत्मा में पाँचों ज्ञान युगपत् कदापि संभव नहीं है।<br /> | |||
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Revision as of 17:01, 12 April 2023
राजवार्तिक/1/30/4,9/90-91 एते हि मतिश्रुते सर्वकालभव्यभिचारिणी नारदपर्वतवत् ।(4/90/26)। एकस्मिन्नात्मन्येकं केवलज्ञानं क्षायिकत्वात् ।(10/91/24)। एकस्मिन्नात्मनि द्वे मतिश्रुते। क्वचित् त्रीणि मतिश्रुतावधिज्ञानानि, मतिश्रुतमन:पर्ययज्ञानानि वा क्वचिच्चत्वारि मतिश्रुतावधिमन:पर्ययज्ञानानि। न पंचैकस्मिन् युगपद् संभवंति।(9/91/17)।=
- एक को आदि लेकर युगपत् एक आत्मा में चार तक ज्ञान होने संभव है।
- वह ऐसे–मति और श्रुत तो नारद और पर्वत की भाँति सदा एक साथ रहते हैं। एक आत्मा में एक ज्ञान हो तो केवलज्ञान होता है क्योंकि वह क्षायिक है, दो हों तो मतिश्रुत: तीन हों तो मति, श्रुत, अवधि, अथवा मति, श्रुत, मन:पर्यय चार हों तो मति श्रुत अवधि और मन:पर्यय। एक आत्मा में पाँचों ज्ञान युगपत् कदापि संभव नहीं है।
देखें सम्यग्ज्ञान ।