कालिदास: Difference between revisions
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<li> राजा विक्रमादित्य नं. 1 के दरबार के नवरत्नों में से एक थे। समय–ई॰पू॰ 117−57 (<span class="GRef"> ज्ञानार्णव/ | <li> राजा विक्रमादित्य नं. 1 के दरबार के नवरत्नों में से एक थे। समय–ई॰पू॰ 117−57 (<span class="GRef"> ज्ञानार्णव/ प्रस्तावना 1 पं. पन्नालाल बाकलीवाल</span>) </li> | ||
<li> वर्तमान इतिहास चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ई. 375−413 के प्रसिद्ध कवि थे। कृति—शकुंतला, विक्रमोर्वशी, मेघदूत, रघुवंश, कुमारसंभव, मालविकाग्निमित्र। </li> | <li> वर्तमान इतिहास चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ई. 375−413 के प्रसिद्ध कवि थे। कृति—शकुंतला, विक्रमोर्वशी, मेघदूत, रघुवंश, कुमारसंभव, मालविकाग्निमित्र। </li> | ||
<li> (<span class="GRef"> ज्ञानार्णव/ | <li> (<span class="GRef"> ज्ञानार्णव/ प्रस्तावना 1 पं. पन्नालाल बाकलीवाल</span>) ‘राजा के दरबार में एक रत्न थे। आप शुभचंद्राचार्य प्रथम के समाकालीन थे। आपके साथ भक्तामर स्तोत्र के रचयिता आचार्य श्री मानतुंग का शास्त्रार्थ हुआ था। समय–ई. 1021−1055। </li> | ||
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Revision as of 14:01, 14 March 2023
- राजा विक्रमादित्य नं. 1 के दरबार के नवरत्नों में से एक थे। समय–ई॰पू॰ 117−57 ( ज्ञानार्णव/ प्रस्तावना 1 पं. पन्नालाल बाकलीवाल)
- वर्तमान इतिहास चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ई. 375−413 के प्रसिद्ध कवि थे। कृति—शकुंतला, विक्रमोर्वशी, मेघदूत, रघुवंश, कुमारसंभव, मालविकाग्निमित्र।
- ( ज्ञानार्णव/ प्रस्तावना 1 पं. पन्नालाल बाकलीवाल) ‘राजा के दरबार में एक रत्न थे। आप शुभचंद्राचार्य प्रथम के समाकालीन थे। आपके साथ भक्तामर स्तोत्र के रचयिता आचार्य श्री मानतुंग का शास्त्रार्थ हुआ था। समय–ई. 1021−1055।