ऊर्ध्वक्रम: Difference between revisions
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<p>देखें [[ क्रम ]]।</p> | <p class="HindiText">वस्तु में दो प्रकार के धर्म हैं क्रमवर्ती व अक्रमवर्ती। आगे-पीछे होने के कारण पर्याय क्रमवर्ती धर्म है और युगपत् पाये जाने के कारण गुण अक्रमवर्ती या सहवर्ती धर्म है। क्रमवर्ती को '''ऊर्ध्व प्रचय''' और अक्रमवर्ती को तिर्यक् प्रचय भी कहते हैं।<br /> | ||
<span class="GRef"> प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका/141 </span><span class="SanskritText">प्रदेशप्रचयो हि तिर्यक्प्रचय: समयविशिष्टवृत्तिप्रचयस्तूर्ध्वप्रचय:। तत्राकाशस्यावस्थितानंतप्रदेशत्वाद्धर्माधर्मयोरवस्थितासंख्येयप्रदेशत्वाज्जीवस्यानवस्थितासंख्येयप्रदेशत्वात् पुद्गलस्य द्रव्येणानेकप्रदेशत्वशक्तियुक्तैकप्रदेशत्वात्पर्यायेण द्विबहुप्रदेशत्वाच्चास्ति तिर्यक्प्रचय:। न पुन: कालस्य शक्त्या व्यक्त्या चैकप्रदेशत्वात् । ऊर्ध्वप्रचयस्तु त्रिकोटिस्पर्शित्वेन सांशत्वाद्द्रव्यवृत्ते: सर्वद्रव्याणामनिवारित एव। अयं तु विशेषसमयविशिष्टवृत्तिप्रचय: शेषद्रव्याणामूर्ध्वप्रचय: समयप्रचय: एव कालस्योर्ध्वप्रचय:। शेषद्रव्याणां वृत्तेर्हि समयादर्थांतरभूतत्वादस्ति समयविशिष्टत्वम् । कालवृत्तेस्तु स्वत: समयभूतत्वात्तन्नास्ति।</span>=<span class="HindiText">प्रदेशों का समूह तिर्यक् प्रचय और समय विशिष्ट वृत्तियों का समूह '''ऊर्ध्वप्रचय''' है। वहाँ आकाश अवस्थित (स्थिर) अनंतप्रदेश वाला है। धर्म तथा अधर्म अवस्थित असंख्य प्रदेश वाले हैं। जीव अनवस्थित असंख्य प्रदेशी है और पुद्गल द्रव्यत: अनेक प्रदेशित्व की शक्ति से युक्त एक प्रदेशवाला है, तथा पर्यायत: दो अथवा बहुत प्रदेशवाला है, इसलिए उनके तिर्यक्प्रचय है; परंतु काल के (तिर्यक्प्रचय) नहीं है, क्योंकि वह शक्ति तथा व्यक्ति की अपेक्षा से एक प्रदेशवाला है। ऊर्ध्वप्रचय तो सब द्रव्यों के अनिवार्य ही है, क्योंकि द्रव्य की वृत्ति तीन कोटियों (भूत, वर्तमान, भविष्यत् ऐसे तीन कालों) को स्पर्श करती है, इसलिए अंशों से युक्त है। परंतु इतना अंतर है कि समय विशिष्ट वृत्तियों का प्रचय (काल को छोड़कर) शेष द्रव्यों का ऊर्ध्वप्रचय है, और समयों का प्रचय काल द्रव्य का ऊर्ध्वप्रचय है; क्योंकि शेष द्रव्यों की वृत्ति समय से अर्थांतरभूत (अन्य) है, इसलिए वह (वृत्ति) समय विशिष्ट है, और काल की तो स्वत: समयभूत है, इसलिए वह समयविशिष्ट नहीं है। </span><BR> | |||
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वस्तु में दो प्रकार के धर्म हैं क्रमवर्ती व अक्रमवर्ती। आगे-पीछे होने के कारण पर्याय क्रमवर्ती धर्म है और युगपत् पाये जाने के कारण गुण अक्रमवर्ती या सहवर्ती धर्म है। क्रमवर्ती को ऊर्ध्व प्रचय और अक्रमवर्ती को तिर्यक् प्रचय भी कहते हैं।
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका/141 प्रदेशप्रचयो हि तिर्यक्प्रचय: समयविशिष्टवृत्तिप्रचयस्तूर्ध्वप्रचय:। तत्राकाशस्यावस्थितानंतप्रदेशत्वाद्धर्माधर्मयोरवस्थितासंख्येयप्रदेशत्वाज्जीवस्यानवस्थितासंख्येयप्रदेशत्वात् पुद्गलस्य द्रव्येणानेकप्रदेशत्वशक्तियुक्तैकप्रदेशत्वात्पर्यायेण द्विबहुप्रदेशत्वाच्चास्ति तिर्यक्प्रचय:। न पुन: कालस्य शक्त्या व्यक्त्या चैकप्रदेशत्वात् । ऊर्ध्वप्रचयस्तु त्रिकोटिस्पर्शित्वेन सांशत्वाद्द्रव्यवृत्ते: सर्वद्रव्याणामनिवारित एव। अयं तु विशेषसमयविशिष्टवृत्तिप्रचय: शेषद्रव्याणामूर्ध्वप्रचय: समयप्रचय: एव कालस्योर्ध्वप्रचय:। शेषद्रव्याणां वृत्तेर्हि समयादर्थांतरभूतत्वादस्ति समयविशिष्टत्वम् । कालवृत्तेस्तु स्वत: समयभूतत्वात्तन्नास्ति।=प्रदेशों का समूह तिर्यक् प्रचय और समय विशिष्ट वृत्तियों का समूह ऊर्ध्वप्रचय है। वहाँ आकाश अवस्थित (स्थिर) अनंतप्रदेश वाला है। धर्म तथा अधर्म अवस्थित असंख्य प्रदेश वाले हैं। जीव अनवस्थित असंख्य प्रदेशी है और पुद्गल द्रव्यत: अनेक प्रदेशित्व की शक्ति से युक्त एक प्रदेशवाला है, तथा पर्यायत: दो अथवा बहुत प्रदेशवाला है, इसलिए उनके तिर्यक्प्रचय है; परंतु काल के (तिर्यक्प्रचय) नहीं है, क्योंकि वह शक्ति तथा व्यक्ति की अपेक्षा से एक प्रदेशवाला है। ऊर्ध्वप्रचय तो सब द्रव्यों के अनिवार्य ही है, क्योंकि द्रव्य की वृत्ति तीन कोटियों (भूत, वर्तमान, भविष्यत् ऐसे तीन कालों) को स्पर्श करती है, इसलिए अंशों से युक्त है। परंतु इतना अंतर है कि समय विशिष्ट वृत्तियों का प्रचय (काल को छोड़कर) शेष द्रव्यों का ऊर्ध्वप्रचय है, और समयों का प्रचय काल द्रव्य का ऊर्ध्वप्रचय है; क्योंकि शेष द्रव्यों की वृत्ति समय से अर्थांतरभूत (अन्य) है, इसलिए वह (वृत्ति) समय विशिष्ट है, और काल की तो स्वत: समयभूत है, इसलिए वह समयविशिष्ट नहीं है।
अधिक जानकारी के लिये देखें क्रम ।