नील: Difference between revisions
From जैनकोष
mNo edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
| | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
<p><span class="GRef"> राजवार्तिक/3/11/7-8/183/21 </span>–<span class="SanskritText">नीलेन वर्णेन योगात् पर्वतो नील इति व्यपदिश्यते। संज्ञा चास्य वासुदेवस्य कृष्णव्यपदेशवत् । क्व पुनरसौ। विदेहरम्यकविनिवेशविभागी।8।</span> =<span class="HindiText">नील वर्ण होने के कारण इस पर्वत को नील कहते हैं। वासुदेव की कृष्ण संज्ञा की तरह यह संज्ञा है। यह विदेह और रम्यक क्षेत्र की सीमा पर स्थित है। विशेष देखें [[ | <p><span class="GRef"> राजवार्तिक/3/11/7-8/183/21 </span>–<span class="SanskritText">नीलेन वर्णेन योगात् पर्वतो नील इति व्यपदिश्यते। संज्ञा चास्य वासुदेवस्य कृष्णव्यपदेशवत् । क्व पुनरसौ। विदेहरम्यकविनिवेशविभागी।8।</span> =<span class="HindiText">नील वर्ण होने के कारण इस पर्वत को नील कहते हैं। वासुदेव की कृष्ण संज्ञा की तरह यह संज्ञा है। यह विदेह और रम्यक क्षेत्र की सीमा पर स्थित है। विशेष देखें [[ जंबूद्वीप_निर्देश#3.4 | लोक - 3.4]]।</span></p> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li class="HindiText"> नील पर्वत पर स्थित एक कूट तथा उसका रक्षकदेव–देखें [[ | <li class="HindiText"> नील पर्वत पर स्थित एक कूट तथा उसका रक्षकदेव–देखें [[ द्वीप_पर्वतों_आदि_के_नाम_रस_आदि#5.4.7 | लोक - 5.4.7]]| </li> | ||
<li class="HindiText">एक ग्रह–देखें [[ ग्रह ]] | <li class="HindiText">एक ग्रह–देखें [[ ग्रह ]]| </li> | ||
<li class="HindiText"> भद्रशाल वन में स्थित एक दिग्गजेंद्र पर्वत–देखें [[ | <li class="HindiText"> भद्रशाल वन में स्थित एक दिग्गजेंद्र पर्वत–देखें [[ द्वीप_पर्वतों_आदि_के_नाम_रस_आदि#5.3.6 | लोक - 5.3.6]]|</li> | ||
<li class="HindiText"> रुचक पर्वत के श्रीवृक्ष कूट पर रहने वाला एक दिग्गजेंद्र देव–देखें [[ | <li class="HindiText"> रुचक पर्वत के श्रीवृक्ष कूट पर रहने वाला एक दिग्गजेंद्र देव–देखें [[ द्वीप_पर्वतों_आदि_के_नाम_रस_आदि#5.13.2 | लोक - 5.13]]| </li> | ||
<li class="HindiText"> उत्तरकुरु में स्थित 10 द्रहों में से एक–देखें [[ | <li class="HindiText"> उत्तरकुरु में स्थित 10 द्रहों में से एक–देखें [[ द्वीप_पर्वतों_आदि_के_नाम_रस_आदि#5.6.3 | लोक - 5.6.3]]| </li> | ||
<li class="HindiText"> नील नामक एक लेश्या–देखें [[ लेश्या ]] | <li class="HindiText"> नील नामक एक लेश्या–देखें [[ लेश्या ]]| </li> | ||
<li class="HindiText"> पं.पु./अधि/श्लो.नं.–सुग्रीव के | <li class="HindiText"> पं.पु./अधि/श्लो.नं.–सुग्रीव के चाचा किष्कुपुर के राजा ऋक्षराज का पुत्र था। (9/13)। अंत में दीक्षित हो मोक्ष पधारे। (119/39)। </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<p> </p> | <p> </p> | ||
Line 23: | Line 23: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p id="1">(1) | <div class="HindiText"> <p id="1">(1) छठवीं पृथिवी के प्रथम प्रस्तार संबंधी हिम इंद्रक बिल की पूर्व दिशा में स्थित महानरक। <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.157 </span></p> | ||
<p id="2">(2) शटकामुख नगर के अधिपति विद्याधर नीलवान् का पुत्र। यह नीलांजना का भाई था। इसके एक पुत्र हुआ था जिसका नाम नीलकंठ था। <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 23.1-7 </span></p> | <p id="2">(2) शटकामुख नगर के अधिपति विद्याधर नीलवान् का पुत्र। यह नीलांजना का भाई था। इसके एक पुत्र हुआ था जिसका नाम नीलकंठ था। <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 23.1-7 </span></p> | ||
<p id="3">(3) जंबूद्वीप का चौथा कुलाचल।<span class="GRef"> महापुराण 5.109, 36. 48, 63.193, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 105.157-158, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.15 </span></p> | <p id="3">(3) जंबूद्वीप का चौथा कुलाचल।<span class="GRef"> महापुराण 5.109, 36. 48, 63.193, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 105.157-158, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.15 </span></p> |
Revision as of 22:30, 2 November 2022
सिद्धांतकोष से
राजवार्तिक/3/11/7-8/183/21 –नीलेन वर्णेन योगात् पर्वतो नील इति व्यपदिश्यते। संज्ञा चास्य वासुदेवस्य कृष्णव्यपदेशवत् । क्व पुनरसौ। विदेहरम्यकविनिवेशविभागी।8। =नील वर्ण होने के कारण इस पर्वत को नील कहते हैं। वासुदेव की कृष्ण संज्ञा की तरह यह संज्ञा है। यह विदेह और रम्यक क्षेत्र की सीमा पर स्थित है। विशेष देखें लोक - 3.4।
- नील पर्वत पर स्थित एक कूट तथा उसका रक्षकदेव–देखें लोक - 5.4.7|
- एक ग्रह–देखें ग्रह |
- भद्रशाल वन में स्थित एक दिग्गजेंद्र पर्वत–देखें लोक - 5.3.6|
- रुचक पर्वत के श्रीवृक्ष कूट पर रहने वाला एक दिग्गजेंद्र देव–देखें लोक - 5.13|
- उत्तरकुरु में स्थित 10 द्रहों में से एक–देखें लोक - 5.6.3|
- नील नामक एक लेश्या–देखें लेश्या |
- पं.पु./अधि/श्लो.नं.–सुग्रीव के चाचा किष्कुपुर के राजा ऋक्षराज का पुत्र था। (9/13)। अंत में दीक्षित हो मोक्ष पधारे। (119/39)।
पुराणकोष से
(1) छठवीं पृथिवी के प्रथम प्रस्तार संबंधी हिम इंद्रक बिल की पूर्व दिशा में स्थित महानरक। हरिवंशपुराण 4.157
(2) शटकामुख नगर के अधिपति विद्याधर नीलवान् का पुत्र। यह नीलांजना का भाई था। इसके एक पुत्र हुआ था जिसका नाम नीलकंठ था। हरिवंशपुराण 23.1-7
(3) जंबूद्वीप का चौथा कुलाचल। महापुराण 5.109, 36. 48, 63.193, पद्मपुराण 105.157-158, हरिवंशपुराण 5.15
(4) नील पर्वत। यह वैडूर्यमणिमय है। विदेहक्षेत्र के आगे स्थित है। इसके नौ कूट हैं। इनके नाम हैं― 1.सिद्धायतनकूट, 2.नीलकूट, 3.पूर्वविदेहकूट, 4.सीताकूट, 5.कीर्तिकूट, 6.नरकांतककूट, 7.अपरविदेहकूट, 8.रम्यककूट, और 9.अपदर्शनकूट। इनकी ऊँचाई और मूल की चौड़ाई सौ योजन, बीच की चौड़ाई पंचहत्तर योजन और ऊर्ध्व भाग की चौड़ाई पचास योजन है। महापुराण 4.51-52 । हरिवंशपुराण 5.99-101
(5) एक वन यह तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ की दीक्षाभूमि थी। महापुराण 67.41
(6) राम का पक्षधर एक विद्याधर यह सुग्रीव के चाचा किष्कुपुर के राजा ऋक्षराज और उसकी रानी हरिकांता का पुत्र तथा नल का भाई था। लंका-विजय के बाद राम ने इसे किष्किंध नगर का राजा बनाया था। अंत में इसने राज्य का परित्याग कर दीक्षा धारण कर ली थी। महापुराण 68.621-622, पद्मपुराण 9.13, 88. 40, 119.39-40