कल्प: Difference between revisions
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<li class="HindiText">महाकल्प–श्रुतज्ञान का 11 वाँ अंगबाह्य है–देखें [[ श्रुतज्ञान#III | श्रुतज्ञान - III]]। </li> | <li class="HindiText">महाकल्प–श्रुतज्ञान का 11 वाँ अंगबाह्य है–देखें [[ श्रुतज्ञान#III | श्रुतज्ञान - III]]। </li> | ||
<li class="HindiText">स्वर्ग विभाग–देखें [[ स्वर्ग#1.2 | स्वर्ग - 1.2]]। </li> | <li class="HindiText">स्वर्ग विभाग–देखें [[ स्वर्ग#1.2 | स्वर्ग - 1.2]]। </li> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<span class="HindiText"> (1) उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी दोनों कालों का बीस कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण काल । <span class="GRef"> महापुराण 3. 14-15, 76.493-494, </span> | <span class="HindiText"> (1) उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी दोनों कालों का बीस कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण काल । <span class="GRef"> महापुराण 3. 14-15, 76.493-494, </span>हरिवंशपुराण 7.63 </br><span class="HindiText">(2) स्वर्ग । सरागी श्रेष्ठ संयमी और सम्यग्दर्शन से विभूषित मुनि तथा श्रावक मरकर स्वर्ग में जाते हैं । ये सोलह होते हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.149, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 17.89-90 </span>देखें [[ स्वर्ग ]]</br><span class="HindiText">3) अग्रायणीयपूर्व की चौदह वस्तुओं में सातवीं वस्तु । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10.77-79 </span> | ||
Revision as of 16:24, 19 September 2022
सिद्धांतकोष से
- साधु चर्या के 10 कल्पों के निर्देश - देखें साधु - 2।
- इन दसों कल्पों के लक्षण–देखें अचेलकत्व, उद्दिष्ट, वह वह नाम । जिनकल्प
- महाकल्प–श्रुतज्ञान का 11 वाँ अंगबाह्य है–देखें श्रुतज्ञान - III।
- स्वर्ग विभाग–देखें स्वर्ग - 1.2।
पुराणकोष से
(1) उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी दोनों कालों का बीस कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण काल । महापुराण 3. 14-15, 76.493-494, हरिवंशपुराण 7.63
(2) स्वर्ग । सरागी श्रेष्ठ संयमी और सम्यग्दर्शन से विभूषित मुनि तथा श्रावक मरकर स्वर्ग में जाते हैं । ये सोलह होते हैं । हरिवंशपुराण 3.149, वीरवर्द्धमान चरित्र 17.89-90 देखें स्वर्ग
3) अग्रायणीयपूर्व की चौदह वस्तुओं में सातवीं वस्तु । हरिवंशपुराण 10.77-79