नो: Difference between revisions
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<span class="GRef"> धवला 6/1,9-1,23/ </span>गा.8-9,44,46<span class="SanskritText"> प्रतिषेधयति समस्तप्रसक्तमर्थं तु जगति नोशब्द:। स पुनस्तदवयवे वा तस्मादर्थांतरे वा स्यात् ।8। | <span class="GRef"> धवला 6/1,9-1,23/ </span>गा.8-9,44,46<span class="SanskritText"> प्रतिषेधयति समस्तप्रसक्तमर्थं तु जगति नोशब्द:। स पुनस्तदवयवे वा तस्मादर्थांतरे वा स्यात् ।8। | ||
नो तद्देशविषयप्रतिषेधोऽन्य: स्वपरयोगात् ।9। </span>=<span class="HindiText">जग में ‘न’ यह शब्द प्रसक्त समस्त अर्थ का तो प्रतिषेध करता ही है, किंतु वह प्रसक्त अर्थ के अवयव अर्थात् एक देश में अथवा उससे भिन्न अर्थ में रहता है, अर्थात् उसका बोध कराता है।8। ‘नो’ यह शब्द स्व और पर के योग से विवक्षित वस्तु के एकदेश का प्रतिषेधक और विधायक होता है।9। </span><span class="GRef"> धवला 15/4/8 </span><span class="PrakritText">णोसद्दो सव्वपडिसेहओ त्ति किण्ण घेप्पदे। [ण] णाणावरणस्साभावस्स पसंगादो, सु [व] वयणविरोहादो च। तम्हा णोसद्दो देसपडिसेहओ त्ति घेत्तव्वं।</span> =<span class="HindiText"> | नो तद्देशविषयप्रतिषेधोऽन्य: स्वपरयोगात् ।9। </span>=<span class="HindiText">जग में ‘न’ यह शब्द प्रसक्त समस्त अर्थ का तो प्रतिषेध करता ही है, किंतु वह प्रसक्त अर्थ के अवयव अर्थात् एक देश में अथवा उससे भिन्न अर्थ में रहता है, अर्थात् उसका बोध कराता है।8। ‘नो’ यह शब्द स्व और पर के योग से विवक्षित वस्तु के एकदेश का प्रतिषेधक और विधायक होता है।9। </span><span class="GRef"> धवला 15/4/8 </span><span class="PrakritText">णोसद्दो सव्वपडिसेहओ त्ति किण्ण घेप्पदे। [ण] णाणावरणस्साभावस्स पसंगादो, सु [व] वयणविरोहादो च। तम्हा णोसद्दो देसपडिसेहओ त्ति घेत्तव्वं।</span> =<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–‘नो’ शब्द को सबके प्रतिषेधक रूप से क्यों नहीं ग्रहण किया जाता ? | ||
<strong>प्रश्न</strong>–‘नो’ शब्द को सबके प्रतिषेधक रूप से क्यों नहीं ग्रहण किया जाता ? | |||
<strong>उत्तर</strong>–नहीं, क्योंकि वैसा स्वीकार करने पर एक तो ज्ञानावरण के अभाव का प्रसंग आता है दूसरे स्ववचन का विरोध भी होता है, इसलिए ‘नो’ शब्द को देश प्रतिषेधक ही ग्रहण करना चाहिए।</span> | <strong>उत्तर</strong>–नहीं, क्योंकि वैसा स्वीकार करने पर एक तो ज्ञानावरण के अभाव का प्रसंग आता है दूसरे स्ववचन का विरोध भी होता है, इसलिए ‘नो’ शब्द को देश प्रतिषेधक ही ग्रहण करना चाहिए।</span> | ||
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Latest revision as of 12:50, 15 August 2022
धवला 6/1,9-1,23/ गा.8-9,44,46 प्रतिषेधयति समस्तप्रसक्तमर्थं तु जगति नोशब्द:। स पुनस्तदवयवे वा तस्मादर्थांतरे वा स्यात् ।8। नो तद्देशविषयप्रतिषेधोऽन्य: स्वपरयोगात् ।9। =जग में ‘न’ यह शब्द प्रसक्त समस्त अर्थ का तो प्रतिषेध करता ही है, किंतु वह प्रसक्त अर्थ के अवयव अर्थात् एक देश में अथवा उससे भिन्न अर्थ में रहता है, अर्थात् उसका बोध कराता है।8। ‘नो’ यह शब्द स्व और पर के योग से विवक्षित वस्तु के एकदेश का प्रतिषेधक और विधायक होता है।9। धवला 15/4/8 णोसद्दो सव्वपडिसेहओ त्ति किण्ण घेप्पदे। [ण] णाणावरणस्साभावस्स पसंगादो, सु [व] वयणविरोहादो च। तम्हा णोसद्दो देसपडिसेहओ त्ति घेत्तव्वं। =प्रश्न–‘नो’ शब्द को सबके प्रतिषेधक रूप से क्यों नहीं ग्रहण किया जाता ? उत्तर–नहीं, क्योंकि वैसा स्वीकार करने पर एक तो ज्ञानावरण के अभाव का प्रसंग आता है दूसरे स्ववचन का विरोध भी होता है, इसलिए ‘नो’ शब्द को देश प्रतिषेधक ही ग्रहण करना चाहिए।