शिवतत्त्व: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> ज्ञानार्णव/21/10 </span><span class="SanskritText">...युगपत्प्रादुर्भूतानंतचतुष्टयो घनपटलविगमे सवितु: प्रतापप्रकाशभिव्यक्तिवत् स खल्वयमात्मैव परमात्मव्यपदेशभाग्भवति।</span> = <span class="HindiText">युगपत् अनंतज्ञान-दर्शन-सुख-वीर्यरूप चतुष्टय जिसके ऐसा, जैसे - मेघ पटलों के दूर होने से सूर्य का प्रताप और प्रकाश युगपत् प्रकट होता है, उसी प्रकार प्रगट हुआ आत्मा ही निश्चय करके परमात्मा के व्यपदेश का धारक होता है। (यही शिवतत्त्व है)।</span></p> | |||
<span class="HindiText">देखें [[ ध्यान#4.5 | ध्यान - 4.5 ]]शिवतत्त्व वास्तव में आत्मा है।</span> | <span class="HindiText">देखें [[ ध्यान#4.5 | ध्यान - 4.5 ]]शिवतत्त्व वास्तव में आत्मा है।</span> | ||
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ज्ञानार्णव/21/10 ...युगपत्प्रादुर्भूतानंतचतुष्टयो घनपटलविगमे सवितु: प्रतापप्रकाशभिव्यक्तिवत् स खल्वयमात्मैव परमात्मव्यपदेशभाग्भवति। = युगपत् अनंतज्ञान-दर्शन-सुख-वीर्यरूप चतुष्टय जिसके ऐसा, जैसे - मेघ पटलों के दूर होने से सूर्य का प्रताप और प्रकाश युगपत् प्रकट होता है, उसी प्रकार प्रगट हुआ आत्मा ही निश्चय करके परमात्मा के व्यपदेश का धारक होता है। (यही शिवतत्त्व है)।
देखें ध्यान - 4.5 शिवतत्त्व वास्तव में आत्मा है।