अमृतरसायन: Difference between revisions
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<span class="GRef">हरिवंश पुराण सर्ग 33 श्लो.</span><span class="HindiText"> | |||
<span class="GRef">हरिवंश पुराण सर्ग 33 श्लो.</span><span class="HindiText"> गिरिनगर के मांसभक्षी राजा चित्ररथ का रसोइया था ॥151॥ मुनियों के उपदेश से राजा ने दीक्षा तथा राजपुत्र ने अणुव्रत धारण कर लिये ॥152-153॥ इससे कुपित हो इसने मुनियों को कड़बी तुंबी का आहार दे दिया, जिसके फल से तीसरे नरक गया ॥154-156॥ यह कृष्ण जी के पूर्व का पंचम भव है।</span> | |||
Revision as of 16:07, 31 August 2022
सिद्धांतकोष से
हरिवंश पुराण सर्ग 33 श्लो. गिरिनगर के मांसभक्षी राजा चित्ररथ का रसोइया था ॥151॥ मुनियों के उपदेश से राजा ने दीक्षा तथा राजपुत्र ने अणुव्रत धारण कर लिये ॥152-153॥ इससे कुपित हो इसने मुनियों को कड़बी तुंबी का आहार दे दिया, जिसके फल से तीसरे नरक गया ॥154-156॥ यह कृष्ण जी के पूर्व का पंचम भव है।
पुराणकोष से
(1) सुराष्ट्र देश में गिरिनगर के राजा चित्ररथ का एक रसोइया । इसकी मांस पकाने की चतुराई से प्रसन्न होकर राजा ने इसे बारह गाँव दिये थे, किंतु राजा चित्ररथ के दीक्षित होते ही राजा के पुत्र मेघरथ ने इसके पास एक ही गाँव रहने दिया था, शेष उससे छीन लिये थे । राजा के दीक्षित होने तथा अपने ग्राम छीने जाने में सुधर्म नामक मुनि को कारण समझकर यह मुनि वेष से द्वेष करने लगा था । द्वेष वश इसने मुनि को आहार में कड़वी तूमड़ी दी थी । कडुवा फल खाने से मुनि का गिरनार पर्वत पर समाधिपूर्वक मरण हुआ । मुनि मरकर अहमिंद्र हुए और यह मरकर तीसरे नरक में उत्पन्न हुआ । महापुराण 71. 246-245
(2) सुभौम चक्रवर्ती का रसोइया । अविवेक पूर्वक सुभौम द्वारा दंडित किये जाने से मरते समय इसने सुभौम को मारने का निदान किया था । मरकर यह विभंगावधिज्ञानधारी ज्योतिष देव हुआ तथा पूर्व वैर वश सुभौम को अपनी ओर आकृष्ट करके छलपूर्वक समुद्र के बीच ले गया । वहाँ इसने उसे मार डाला । महापुराण 65.152-168