उपात्त: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 1/11/6/52 (24)</span><p class="SanskritText"> उपात्तानींद्रियाणि मनश्च, अनुपात्तं प्रकाशोपदेशादिपरः तत्प्राधान्यादवगमः परोक्षं।</p> | <span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 1/11/6/52 (24)</span><p class="SanskritText"> उपात्तानींद्रियाणि मनश्च, अनुपात्तं प्रकाशोपदेशादिपरः तत्प्राधान्यादवगमः परोक्षं।</p> | ||
<p class="HindiText">= उपात्त इंद्रियाँ व मन तथा अनुपात्त प्रकाश उपदेशादि पर हैं। पर की प्रधानता से होने वाला ज्ञान परोक्ष है।</p> | <p class="HindiText">= उपात्त इंद्रियाँ व मन तथा अनुपात्त प्रकाश उपदेशादि पर हैं। पर की प्रधानता से होने वाला ज्ञान परोक्ष है।</p> | ||
<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 9/7/1/600/7< | <span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 9/7/1/600/7</span><span class="SanskritText"> आत्माना रागादिपरिणामात्मनाकर्मनोकर्मभावेन गृहीतानि उपात्तानि पुद्गलद्रव्याणि, अनुपात्तानि परमाण्वादीनि, तेषां सर्वेषां द्रव्यात्मना नित्यत्वं पर्यायात्मना सततमनुपरतभेदसंसर्ग वृत्तित्वादनित्यत्वम्।</span> | ||
<p class="HindiText">= आत्मा के रागादि परिणामों से कर्म और नोकर्म रूप में जिन पुद्गल द्रव्यों का ग्रहण किया जाता है वे उपात्त पुद्गलद्रव्य तथा परमाणु आदि अनुपात्त पुद्गल सभी द्रव्यदृष्टि से नित्य होकर भी पर्याय दृष्टि से प्रतिक्षण पर्याय परिवर्तन होने से अनित्य हैं।</p> | <p class="HindiText">= आत्मा के रागादि परिणामों से कर्म और नोकर्म रूप में जिन पुद्गल द्रव्यों का ग्रहण किया जाता है वे उपात्त पुद्गलद्रव्य तथा परमाणु आदि अनुपात्त पुद्गल सभी द्रव्यदृष्टि से नित्य होकर भी पर्याय दृष्टि से प्रतिक्षण पर्याय परिवर्तन होने से अनित्य हैं।</p> | ||
Latest revision as of 19:09, 31 August 2022
राजवार्तिक अध्याय 1/11/6/52 (24)
उपात्तानींद्रियाणि मनश्च, अनुपात्तं प्रकाशोपदेशादिपरः तत्प्राधान्यादवगमः परोक्षं।
= उपात्त इंद्रियाँ व मन तथा अनुपात्त प्रकाश उपदेशादि पर हैं। पर की प्रधानता से होने वाला ज्ञान परोक्ष है।
राजवार्तिक अध्याय 9/7/1/600/7 आत्माना रागादिपरिणामात्मनाकर्मनोकर्मभावेन गृहीतानि उपात्तानि पुद्गलद्रव्याणि, अनुपात्तानि परमाण्वादीनि, तेषां सर्वेषां द्रव्यात्मना नित्यत्वं पर्यायात्मना सततमनुपरतभेदसंसर्ग वृत्तित्वादनित्यत्वम्।
= आत्मा के रागादि परिणामों से कर्म और नोकर्म रूप में जिन पुद्गल द्रव्यों का ग्रहण किया जाता है वे उपात्त पुद्गलद्रव्य तथा परमाणु आदि अनुपात्त पुद्गल सभी द्रव्यदृष्टि से नित्य होकर भी पर्याय दृष्टि से प्रतिक्षण पर्याय परिवर्तन होने से अनित्य हैं।