ऋजुसूत्रनय: Difference between revisions
From जैनकोष
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p>देखें [[ नय#III.5 | नय - III.5]]।</p> | <span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि/1/33/142/9</span><p class="SanskritText"> ऋजु प्रगुणं सूत्रयति तंत्रयतीति ऋजुसूत्र:।</p> | ||
<p class="HindiText">=ऋजु का अर्थ प्रगुण है। ऋजु अर्थात् सरल को सूचित करता है अर्थात् स्वीकार करता है, वह '''ऋजुसूत्र नय''' है। </p> | |||
<span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि/1/33/142/9</span><p class="SanskritText"> पूर्वापरांस्त्रिकालविषयानतिशय्य वर्तमानकालविषयानादत्ते अतीतानागतयोर्विनष्टानुत्पन्नत्वेन व्यवहाराभावात् ।</p> | |||
<p class="HindiText">=यह नय पहिले और पीछेवाले तीनों कालों के विषय को ग्रहण न करके वर्तमान काल के विषयभूत पदार्थों को ग्रहण करता है, क्योंकि अतीत के विनष्ट और अनागत के अनुत्पन्न होने से उनमें व्यवहार नहीं हो सकता।</p> | |||
<p class="HindiText">देखें [[ नय#III.5 | नय - III.5]]।</p> | |||
Line 9: | Line 15: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: ऋ]] | [[Category: ऋ]] | ||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] |
Revision as of 15:15, 29 January 2023
सर्वार्थसिद्धि/1/33/142/9
ऋजु प्रगुणं सूत्रयति तंत्रयतीति ऋजुसूत्र:।
=ऋजु का अर्थ प्रगुण है। ऋजु अर्थात् सरल को सूचित करता है अर्थात् स्वीकार करता है, वह ऋजुसूत्र नय है।
सर्वार्थसिद्धि/1/33/142/9
पूर्वापरांस्त्रिकालविषयानतिशय्य वर्तमानकालविषयानादत्ते अतीतानागतयोर्विनष्टानुत्पन्नत्वेन व्यवहाराभावात् ।
=यह नय पहिले और पीछेवाले तीनों कालों के विषय को ग्रहण न करके वर्तमान काल के विषयभूत पदार्थों को ग्रहण करता है, क्योंकि अतीत के विनष्ट और अनागत के अनुत्पन्न होने से उनमें व्यवहार नहीं हो सकता।
देखें नय - III.5।