महापुराण: Difference between revisions
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Revision as of 08:24, 21 September 2022
सिद्धांतकोष से
1. आ. जिनसेन द्वि. (ई. 818-878) कृत कलापूर्ण संस्कृत काव्य जिसे इनकी मृत्यु के पश्चात् इनके शिष्य आ. गुणभद्र ने ई. 898 में पूरा किया। जिनसेन वाले भाग का नाम आदि पुराण है जिसमें भगवान् ऋषभ तथा भरत बाहुबली का चरित्र चित्रित किया गया है। इसमें 47 पर्व तथा 15000 श्लोक हैं। गुणभद्र वाले भाग का नाम उत्तर पुराण है जिसमें शेष 23 तीर्थंकरों का उल्लेख है। इसमें 29 पर्व और 8000 श्लोक हैं। दोनों मिलकर महापुराण कहलाता है। देखें आदिपुराण तथा उत्तर पुराण .
2. कवि पुष्पदंत (ई. 965) कृत उपर्युक्त प्रकार दो खंडों में विभक्त अपभ्रंश महाकाव्य। अपर नाम ‘तीसट्ठि महापुरिगुणालंकार’। दोनों में 80+42 संधि और 20,000 श्लोक हैं। (ती./4/110)।
3. मल्लिषेण (ई. 1047) कृत 2000 श्लोक प्रमाण तेरसठ शलाका पुरुष चरित्र। (ती. /3/174)। रचा था।
पुराणकोष से
आचार्य जिनसेन द्वारा रचित और आचार्य गुणभद्र द्वारा संपूरित त्रेसठ शलाका पुरुषों का पुराण । इसके दो खंड हैं― आदिपुराण या पूर्वपुराण और उत्तरपुराण । आदिपुराण सैंतालीस पर्वों में पूर्ण हुआ है । इसके बयालीस पर्व पूर्ण और तैंतालीसवें पर्व के तीन श्लोक भगवज्जिन-सेनाचार्य द्वारा लिखे गये हैं । शेष ग्रंथ की पूर्ति उनके शिष्य गुणभद्राचार्य ने की है । जिनसेन कृत खंड का नाम आदिपुराण और गुणभद्र कृत खंड का नाम उत्तरपुराण है । दोनों मिलकर महापुराण कहलाता है । आदिपुराण में भगवान् ऋषभदेव और भरत चक्रवर्ती के चरित्र का विस्तृत वर्णन है । इसी प्रकार उत्तरपुराण में अजित से महावीर पर्यंत तेईस तीर्थंकरों के जीवन चरित्र का उल्लेख है । इस पुराण में आचार्य जिनसेन द्वारा रचित नौ हजार दो सौ पचासी तथा आचार्य गुणभद्र द्वारा रचित नौ हजार दो सौ सैंतीस श्लोक है । कुल श्लोक अठारह हजार पांच सौ बाईस है । यह मात्र धर्मकथा ही नहीं एक सुंदर महाकाव्य है । आचार्य जिनसेन ने इसे महापुराण कहा है । महापुरुषों से संबंधित तथा महान् अभ्युदयस्वर्ग मोक्ष आदि कल्याणों का कारण होने से महर्षियों ने भी इसे महापुराण माना है । इसे ऋषि प्रणीत होने से आर्ष, सत्यार्थ प्रणीत होने से ‘‘धर्मशास्त्र’’ और प्राचीन कथाओं का निरूपक होने से ‘‘इतिहास’’ कहा गया है । महापुराण 1.23-25, 2.134