परा: Difference between revisions
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Revision as of 22:47, 17 November 2022
सिद्धांतकोष से
कार्तिकेयानुप्रेक्षा/199 णीसेस-कम्म-णासे अप्प-सहावेण जा समुप्पत्ती। कम्मज-भाव-खए-विय सा विय पत्ती परा होदि। = समस्त कर्मों का नाश होने पर अपने स्वभाव से जो उत्पन्न होता है, उसे परा कहते हैं। और कर्मों से उत्पन्न होनेवाले भावों के क्षय से जो उत्पन्न होता है, उसे भी परा कहते हैं। 199।
मोक्षपाहुड़/ टी./6/308/18 परा उत्कृष्टाः। = परा अर्थात् उत्कृष्ट।
पुराणकोष से
वत्स देश के आगे की एक नदी । यहाँ भरतेश की सेना आयी थी । महापुराण 29.69