परिणमन: Difference between revisions
From जैनकोष
Jagrti jain (talk | contribs) mNo edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 7: | Line 7: | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong>अन्य संबंधित विषय </strong><br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol> | <ol> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong>परिणमन सामान्य का लक्षण।- </strong>देखें [[ विपरिणमन ]]। <br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong>एक द्रव्य दूसरे द्रव्यरूप परिणमन नहीं कर सकता।-</strong> देखें [[ द्रव्य#5 | द्रव्य - 5]]। <br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong>गुण भी द्रव्यवत् परिणमन करता है।- </strong>देखें [[ गुण#2 | गुण - 2]]। <br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong>अखिल द्रव्य परिणमन करता है, द्रव्यांश नहीं।- </strong>देखें [[ उत्पाद#3 | उत्पाद - 3]]। <br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong>एक द्रव्य दूसरे को परिणमन नहीं करा सकता।- </strong>देखें [[ कर्ता व कारण#III | कर्ता व कारण - III]]। <br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong>शुद्ध द्रव्य को अपरिणामी कहने की विवक्षा।- </strong>देखें [[ द्रव्य#2 | द्रव्य - 2]]।</span></li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</ol> | </ol> |
Revision as of 15:11, 27 November 2023
- ज्ञेयार्थ परिणमन का लक्षण
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका/42 उदयगतेषु पुद्गलकर्मांशेषु सत्सु संचेयमानो मोह-रागद्वेषपरिणतत्वात् ज्ञेयार्थं परिणमनलक्षणया क्रियया युज्यमानः क्रियाफलभूतं बंधमनुभवति, न तु ज्ञानादिति। = उदयगत पुद्गल कर्मांशों के अस्तित्व में चेतित होने पर - जानने पर - अनुभव करने पर मोह राग द्वेष में परिणत होने से ज्ञेयार्थ परिणमन स्वरूप क्रिया के साथ युक्त होता हुआ आत्मा क्रिया फलरूप बंध का अनुभव करता है। किंतु ज्ञान से नहीं (इस प्रकार प्रथम ही अर्थ परिणमन क्रिया के फलभूत बंध का समर्थन किया गया है।)
समयसार / तात्पर्यवृत्ति/95/152/10 धर्मास्तिकायोऽयमित्यादि विकल्पः यदा ज्ञेयतत्त्वविचारकाले करोति जीवः तदा शुद्धात्मस्वरूपं विस्मरति तस्मिन्विकल्पे कृते सति धर्मोऽहमिति विकल्पः उपचारेण घटत इति भावार्थः। = ‘यह धर्मास्तिकाय है’ ऐसा विकल्प जब जीव, ज्ञेय-तत्त्व के विचार काल में करता है, उस समय वह शुद्धात्मा का स्वरूप भूल जाता है (क्योंकि उपयोग में एक समय एक ही विकल्प रह सकता है।); इसलिए उस विकल्प के किये जाने पर ‘मैं धर्मास्तिकाय हूँ’ ऐसा उपचार से घटित होता है। यह भावार्थ है।
प्रवचनसार/ पं. जयचंद/42 ज्ञेय पदार्थरूप से परिणमन करना अर्थात् ‘यह हरा है, यह पीला है’ इत्यादि विकल्प रूप से ज्ञेयरूप पदार्थों में परिणमन करना यह कर्म का भोगना है, ज्ञान का नहीं। ...ज्ञेय पदार्थों में रुकना - उनके सम्मुख वृत्ति होना, वह ज्ञान का स्वरूप नहीं है।
- अन्य संबंधित विषय
- परिणमन सामान्य का लक्षण।- देखें विपरिणमन ।
- एक द्रव्य दूसरे द्रव्यरूप परिणमन नहीं कर सकता।- देखें द्रव्य - 5।
- गुण भी द्रव्यवत् परिणमन करता है।- देखें गुण - 2।
- अखिल द्रव्य परिणमन करता है, द्रव्यांश नहीं।- देखें उत्पाद - 3।
- एक द्रव्य दूसरे को परिणमन नहीं करा सकता।- देखें कर्ता व कारण - III।
- शुद्ध द्रव्य को अपरिणामी कहने की विवक्षा।- देखें द्रव्य - 2।