पूरक: Difference between revisions
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Revision as of 23:13, 18 September 2022
ज्ञानार्णव/29/4 द्वादशांतात्समाकृष्य यः समीरः प्रपूर्यते। स पूरक इति ज्ञेयो वायुविज्ञानकोविदैः। 4। = द्वादशांत कहिए तालुवे के छिद्र से अथवा द्वादशअंगुल पर्यंत से खैंचकर पवन को अपनी इच्छानुसार अपने शरीर में पूरण करै, उसको वायुविज्ञानी पंडितों ने पूरक पवन कहा है। 4।
- पूरक प्राणायाम संबंधी विषय- देखें प्राणायाम ।