अतिशय: Difference between revisions
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<p>भगवान् के 34 अतिशय - देखें [[ अर्हंत#6|अर्हंत-6| ]]।</p> | <p class="HindiText">भगवान् के 34 अतिशय - देखें [[ अर्हंत#6 | अर्हंत-6| ]]।</p> | ||
Revision as of 18:05, 13 September 2022
सिद्धांतकोष से
भगवान् के 34 अतिशय - देखें अर्हंत-6| ।
पुराणकोष से
अर्हंत के विशेष वैभव की प्रतीक चौतीस बातें । अपर नाम अतिशय । महापुराण 6.144,54.231 इनमें जो दस अतिशय जन्म के समय होते हैं वे हैं― शरीर की स्वेद रहितता, शारीरिक-निर्मलता, श्वेत-रुधिर, समचतुरस्रसंस्थान, सुगंधित शरीर, अनंतशक्ति, शरीर का उत्तम लक्षणों से युक्त होना, अनुपम रूप, हितमित-प्रिय वचन और उत्तम संहनन । पद्मपुराण 2.89-90, हरिवंशपुराण 3.10-11 केवलज्ञान के समय होने वाले दस अतिशय ये हैं― विहार के समय दो सौ याजन तक सुभिक्ष का होना, निर्निगल का दृष्टि, नख और केशों का वृद्धि रहित होना, कवलाहार का न रहना, वृद्धावस्था का न होना, शारीरिक-छाया का न होना, एक मुंह होने पर भी चार मुंह दिखायी देना, उपसर्ग का अभाव, प्राणिपीड़ा का अभाव और आकाश-गमन । पद्मपुराण 2.91-93, हरिवंशपुराण 3.12-15 चौदह अतिशय देवकृत होते हैं । वे ये है― जीवों में पारस्परिक मैत्रीभाव, मंद सुगंधित वायु का बहना, सभी ऋतुओं के फूल और फलों का एक साथ फूलना-फलना, दर्पण के समान पृथिवी का निर्मल होना, एक योजन पर्यंत पवन द्वारा भूमिका निष्कंटक किया जाना, स्नतिककुमार देवों द्वारा सुगंधित मेघवुष्टि का होना, चलते समय चरणों के नीचे कमल-सृष्टि का होना, पृथिवी की धन-धान्य आदि से पूर्णता रहना, आकाश का निर्मल होना, दिशाओं का धूल और धुएँ आदि से निर्मल होना, धर्मचक्र का आगे-आगे चलना, अर्द्धमागधी भाषा, आकाश में द्रव्यों का होना और आठ मंगल द्रव्यों का रहना । महापुराण 2.94-101, हरिवंशपुराण 3.16-30, वीरवर्द्धमान चरित्र 19.56-78