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<p class="HindiText" id="1">(1) श्रुत । मूलत: ये ग्यारह कहे गये हैं― 1. आचारांग 2. सूत्रकृतांग 3. स्थानांग 4. समवायांग 5. व्याख्याप्रज्ञप्तिअंग 6. ज्ञातृधर्मकथांग 7. उपासकाध्ययनांग 8. अंतकुद्दशांग 9. अनुत्तरोपपादिकदशांग 10. प्रश्नव्याकरणांग और 11 विपाकसूत्रांग । <br> | |||
<p id="2"> (2) भरतक्षेत्र के आर्यखंड का एक देश । इसकी रचना स्वयं इंद्र ने की थी । वृषभदेव और महावीर ने विहार कर यहाँ धर्मोपदेश दिये थे । <span class="GRef"> महापुराण 16.152-156, 25.287-288, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 1. 132-134 </span></p> | इनमें दृष्टिवादाग को सम्मिलित करने से ये बारह अंग हो जाते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 6.148, 51, 13, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.92-15 </span></p> | ||
<p id="3"> (3) रत्नप्रभा नरकभूमि के खरभाग का बारहवां पटल । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.52-54 </span>देखें [[ खरभाग ]]</p> | <p class="HindiText" id="2"> (2) भरतक्षेत्र के आर्यखंड का एक देश । इसकी रचना स्वयं इंद्र ने की थी । वृषभदेव और महावीर ने विहार कर यहाँ धर्मोपदेश दिये थे । <span class="GRef"> महापुराण 16.152-156, 25.287-288, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 1. 132-134 </span></p> | ||
<p id="4"> (4) तालगत गांधर्व का एक भेद । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 19.149-152 </span></p> | <p class="HindiText id="3"> (3) रत्नप्रभा नरकभूमि के खरभाग का बारहवां पटल । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.52-54 </span>देखें [[ खरभाग ]]</p> | ||
<p id="5"> (5) सुग्रीव का ज्येष्ठ पुत्र, अंगद का अग्रज और राम के पुत्रों का सहायक योद्धा । राम-लक्ष्मण और राम के पुत्रों के बीच हुए युद्ध में इसने लवणांकुश के सहायक सेनानायक वज्रजंघ का साथ दिया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 10.12, 60.57-59, 102.154-157 </span></p> | <p class="HindiText id="4"> (4) तालगत गांधर्व का एक भेद । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 19.149-152 </span></p> | ||
<p id="6"> (6) प्राणियों के अंगोपांग के स्पर्श अथवा दर्शन द्वारा उनके सुख-दुःख के बोधक अष्टांगनिमित्तज्ञान का एक भेद । <span class="GRef"> महापुराण 62.181 185, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10. 117, </span>देखें [[ अष्टांगनिमित्तज्ञान ]]।</p> | <p class="HindiText id="5"> (5) सुग्रीव का ज्येष्ठ पुत्र, अंगद का अग्रज और राम के पुत्रों का सहायक योद्धा । राम-लक्ष्मण और राम के पुत्रों के बीच हुए युद्ध में इसने लवणांकुश के सहायक सेनानायक वज्रजंघ का साथ दिया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 10.12, 60.57-59, 102.154-157 </span></p> | ||
<p class="HindiText id="6"> (6) प्राणियों के अंगोपांग के स्पर्श अथवा दर्शन द्वारा उनके सुख-दुःख के बोधक अष्टांगनिमित्तज्ञान का एक भेद । <span class="GRef"> महापुराण 62.181 185, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10. 117, </span>देखें [[ अष्टांगनिमित्तज्ञान ]]।</p> | |||
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Revision as of 14:59, 3 October 2022
सिद्धांतकोष से
1. ( महापुराण प्र. 49/पं. पन्नालाल) मगध देश का पूर्व भाग। प्रधान नगर चंपा (भागलपुर) है।
2. भरत क्षेत्र आर्य खंड का एक देश - देखें मनुष्य - 4.4।
3. ( पद्मपुराण सर्ग 10/12) सुग्रीव का बड़ा पुत्र। 5.
4. ( धवला पुस्तक 5/प्र. 27) Element।
5. पंचाध्यायी / उत्तरार्ध/478 लक्षणं च गुणश्चांगं शब्दाश्चैकार्थवाचकाः।
= लक्षण, गुण और अंग ये सब एकार्थवाचक शब्द हैं।
6. अनुमान के पाँच अंग - देखें अनुमान - 3।
7. जल्प के चार अंग - देखें जल्प ।
8. सम्यग्दर्शन, ज्ञान व चारित्र के अंग।
9. शरीर के अंग - देखें अंगोपांग ।
पुराणकोष से
(1) श्रुत । मूलत: ये ग्यारह कहे गये हैं― 1. आचारांग 2. सूत्रकृतांग 3. स्थानांग 4. समवायांग 5. व्याख्याप्रज्ञप्तिअंग 6. ज्ञातृधर्मकथांग 7. उपासकाध्ययनांग 8. अंतकुद्दशांग 9. अनुत्तरोपपादिकदशांग 10. प्रश्नव्याकरणांग और 11 विपाकसूत्रांग ।
इनमें दृष्टिवादाग को सम्मिलित करने से ये बारह अंग हो जाते हैं । महापुराण 6.148, 51, 13, हरिवंशपुराण 2.92-15
(2) भरतक्षेत्र के आर्यखंड का एक देश । इसकी रचना स्वयं इंद्र ने की थी । वृषभदेव और महावीर ने विहार कर यहाँ धर्मोपदेश दिये थे । महापुराण 16.152-156, 25.287-288, पांडवपुराण 1. 132-134
(3) रत्नप्रभा नरकभूमि के खरभाग का बारहवां पटल । हरिवंशपुराण 4.52-54 देखें खरभाग
(4) तालगत गांधर्व का एक भेद । हरिवंशपुराण 19.149-152
(5) सुग्रीव का ज्येष्ठ पुत्र, अंगद का अग्रज और राम के पुत्रों का सहायक योद्धा । राम-लक्ष्मण और राम के पुत्रों के बीच हुए युद्ध में इसने लवणांकुश के सहायक सेनानायक वज्रजंघ का साथ दिया था । पद्मपुराण 10.12, 60.57-59, 102.154-157
(6) प्राणियों के अंगोपांग के स्पर्श अथवा दर्शन द्वारा उनके सुख-दुःख के बोधक अष्टांगनिमित्तज्ञान का एक भेद । महापुराण 62.181 185, हरिवंशपुराण 10. 117, देखें अष्टांगनिमित्तज्ञान ।