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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) पोदनपुर के महाराजा प्रजापति तथा महारानी मृगावती का पुत्र― प्रथम नारायण । यह राजा की प्रथम रानी जयावती के पुत्र विजय बलभद्र का भाई था और तीर्थंकर श्रेयांसनाथ के तीर्थ में हुआ था <span class="GRef"> महापुराण 57.84-85, 62.90, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 20.218-288, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 53. 36, 60.288, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.41-44, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 61-67 </span>इसका रथनूपुर नगर के राजा विद्याधर ज्वलनजटी की पुत्री स्वयंप्रभा से विवाह हुआ था । इसने ज्वलनजटी से सिंह एवं गरुड़वाहिनी विद्याएँ प्राप्त की थी । इसकी शारीरिक अवगाहना अस्सी धनुष और आयु चौरासी लाख वर्ष थी । ये दोनों भाई अलका नगरी के राजा विद्याधर मयूरग्रीव के पुत्र प्रतिनारायण अश्वग्रीव को मारकर तीन खंड पृथ्वी के स्वामी हुए थे । सब मिलाकर सोलह हजार मुकुटबद्ध राजा, विद्याधर और व्यंतर देव इसके अधीन थे । धनुष, शंख, चक्र, दंड, असि, शक्ति और गदा ये इसके सात रत्न थे । इसकी सोलह हजार रानियाँ थीं । स्वयंप्रभा इनकी पटरानी थी । इससे दो पुत्र-विजय और विजयभद्र और एक पुत्री ज्योतिप्रभा हुई । आरंभ की अधिकता के कारण रौद्रध्यान से मरकर यह सातवें नरक गया था । <span class="GRef"> महापुराण 57.89-95, 62.25-30, 43-44, 111-112, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 46.213, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.517-518, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4. 85, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 71, 106-131 </span>यह अपने पूर्वभव में पुरूरवा भील था । मुनिराज से अणुव्रत ग्रहण कर मरण करने से सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुआ । वहाँ से चयकर यह भरत चक्रवर्ती का मरीचि नामक पुत्र हुआ । इसने मिथ्यामार्ग चलाया था । इसके बाद यह चिरकाल तक अनेक गतियों में भ्रमण करता रहा । पश्चात् राजगृह नगर के राजा विश्वभूति का पुत्र विश्वनंदी हुआ । इसके पश्चात् महाशुक्र स्वर्ग मे देव और तत्पश्चात् त्रिपृष्ठ की पर्याय में नारायण हुआ । आगामी दसवें | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) पोदनपुर के महाराजा प्रजापति तथा महारानी मृगावती का पुत्र― प्रथम नारायण । यह राजा की प्रथम रानी जयावती के पुत्र विजय बलभद्र का भाई था और तीर्थंकर श्रेयांसनाथ के तीर्थ में हुआ था <span class="GRef"> महापुराण 57.84-85, 62.90, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 20.218-288, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 53. 36, 60.288, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.41-44, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 61-67 </span>इसका रथनूपुर नगर के राजा विद्याधर ज्वलनजटी की पुत्री स्वयंप्रभा से विवाह हुआ था । इसने ज्वलनजटी से सिंह एवं गरुड़वाहिनी विद्याएँ प्राप्त की थी । इसकी शारीरिक अवगाहना अस्सी धनुष और आयु चौरासी लाख वर्ष थी । ये दोनों भाई अलका नगरी के राजा विद्याधर मयूरग्रीव के पुत्र प्रतिनारायण अश्वग्रीव को मारकर तीन खंड पृथ्वी के स्वामी हुए थे । सब मिलाकर सोलह हजार मुकुटबद्ध राजा, विद्याधर और व्यंतर देव इसके अधीन थे । धनुष, शंख, चक्र, दंड, असि, शक्ति और गदा ये इसके सात रत्न थे । इसकी सोलह हजार रानियाँ थीं । स्वयंप्रभा इनकी पटरानी थी । इससे दो पुत्र-विजय और विजयभद्र और एक पुत्री ज्योतिप्रभा हुई । आरंभ की अधिकता के कारण रौद्रध्यान से मरकर यह सातवें नरक गया था । <span class="GRef"> महापुराण 57.89-95, 62.25-30, 43-44, 111-112, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 46.213, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.517-518, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4. 85, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 71, 106-131 </span>यह अपने पूर्वभव में पुरूरवा भील था । मुनिराज से अणुव्रत ग्रहण कर मरण करने से सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुआ । वहाँ से चयकर यह भरत चक्रवर्ती का मरीचि नामक पुत्र हुआ । इसने मिथ्यामार्ग चलाया था । इसके बाद यह चिरकाल तक अनेक गतियों में भ्रमण करता रहा । पश्चात् राजगृह नगर के राजा विश्वभूति का पुत्र विश्वनंदी हुआ । इसके पश्चात् महाशुक्र स्वर्ग मे देव और तत्पश्चात् त्रिपृष्ठ की पर्याय में नारायण हुआ । आगामी दसवें भव में यही तीर्थंकर महावीर हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 57.72, 82 , 62. 85-90, 74.203-204, 241-260, 76 534-543 </span></p> | ||
<p id="2">(2) आगामी उत्सर्पिणी काल का आठवाँ नारायण । <span class="GRef"> महापुराण 76.489, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 567 </span></p> | <p id="2">(2) आगामी उत्सर्पिणी काल का आठवाँ नारायण । <span class="GRef"> महापुराण 76.489, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 567 </span></p> | ||
<p id="3">(3) तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का मुख्य प्रश्नकर्त्ता । <span class="GRef"> महापुराण 76.530 </span></p> | <p id="3">(3) तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का मुख्य प्रश्नकर्त्ता । <span class="GRef"> महापुराण 76.530 </span></p> |
Revision as of 13:44, 27 September 2022
सिद्धांतकोष से
पुराणकोष से
(1) पोदनपुर के महाराजा प्रजापति तथा महारानी मृगावती का पुत्र― प्रथम नारायण । यह राजा की प्रथम रानी जयावती के पुत्र विजय बलभद्र का भाई था और तीर्थंकर श्रेयांसनाथ के तीर्थ में हुआ था महापुराण 57.84-85, 62.90, पद्मपुराण 20.218-288, हरिवंशपुराण 53. 36, 60.288, पांडवपुराण 4.41-44, वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 61-67 इसका रथनूपुर नगर के राजा विद्याधर ज्वलनजटी की पुत्री स्वयंप्रभा से विवाह हुआ था । इसने ज्वलनजटी से सिंह एवं गरुड़वाहिनी विद्याएँ प्राप्त की थी । इसकी शारीरिक अवगाहना अस्सी धनुष और आयु चौरासी लाख वर्ष थी । ये दोनों भाई अलका नगरी के राजा विद्याधर मयूरग्रीव के पुत्र प्रतिनारायण अश्वग्रीव को मारकर तीन खंड पृथ्वी के स्वामी हुए थे । सब मिलाकर सोलह हजार मुकुटबद्ध राजा, विद्याधर और व्यंतर देव इसके अधीन थे । धनुष, शंख, चक्र, दंड, असि, शक्ति और गदा ये इसके सात रत्न थे । इसकी सोलह हजार रानियाँ थीं । स्वयंप्रभा इनकी पटरानी थी । इससे दो पुत्र-विजय और विजयभद्र और एक पुत्री ज्योतिप्रभा हुई । आरंभ की अधिकता के कारण रौद्रध्यान से मरकर यह सातवें नरक गया था । महापुराण 57.89-95, 62.25-30, 43-44, 111-112, पद्मपुराण 46.213, हरिवंशपुराण 60.517-518, पांडवपुराण 4. 85, वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 71, 106-131 यह अपने पूर्वभव में पुरूरवा भील था । मुनिराज से अणुव्रत ग्रहण कर मरण करने से सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुआ । वहाँ से चयकर यह भरत चक्रवर्ती का मरीचि नामक पुत्र हुआ । इसने मिथ्यामार्ग चलाया था । इसके बाद यह चिरकाल तक अनेक गतियों में भ्रमण करता रहा । पश्चात् राजगृह नगर के राजा विश्वभूति का पुत्र विश्वनंदी हुआ । इसके पश्चात् महाशुक्र स्वर्ग मे देव और तत्पश्चात् त्रिपृष्ठ की पर्याय में नारायण हुआ । आगामी दसवें भव में यही तीर्थंकर महावीर हुआ । महापुराण 57.72, 82 , 62. 85-90, 74.203-204, 241-260, 76 534-543
(2) आगामी उत्सर्पिणी काल का आठवाँ नारायण । महापुराण 76.489, हरिवंशपुराण 60. 567
(3) तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का मुख्य प्रश्नकर्त्ता । महापुराण 76.530