दंड: Difference between revisions
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<p id="4">(4) कर्मभूमि से आरंभ में योग और क्षेम व्यवस्था के लिए हा, मा, और धिक् इस त्रिविध दंड की व्यवस्था की गयी थी । <span class="GRef"> महापुराण 16.250 </span></p> | <p id="4">(4) कर्मभूमि से आरंभ में योग और क्षेम व्यवस्था के लिए हा, मा, और धिक् इस त्रिविध दंड की व्यवस्था की गयी थी । <span class="GRef"> महापुराण 16.250 </span></p> | ||
<p id="5">(5) चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में एक अजीव रत्न । यह सैन्यपुरोगामी और एक हजार देवों द्वारा रक्षित होता है । भरतेश के पास यह रत्न था । <span class="GRef"> महापुराण 28.2-3, 37. 83-85 </span></p> | <p id="5">(5) चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में एक अजीव रत्न । यह सैन्यपुरोगामी और एक हजार देवों द्वारा रक्षित होता है । भरतेश के पास यह रत्न था । <span class="GRef"> महापुराण 28.2-3, 37. 83-85 </span></p> | ||
<p id="6">(6) इंद्र विद्याधर का पक्षधर एक योद्धा । <span class="GRef"> पद्मपुराण 12.217 </span></p> | <p id="6">(6) इंद्र विद्याधर का पक्षधर एक योद्धा । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_12#217|पद्मपुराण - 12.217]] </span></p> | ||
<p id="7">(7) महाबल का पूर्व वंशज एक विद्याधर । यह मरकर अपने ही भंडार में अजगर सर्प हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 5.117-121 </span></p> | <p id="7">(7) महाबल का पूर्व वंशज एक विद्याधर । यह मरकर अपने ही भंडार में अजगर सर्प हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 5.117-121 </span></p> | ||
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Revision as of 22:21, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
- चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में से एक–देखें शलाका पुरुष - 2
- क्षेत्र का प्रमाण विशेष–अपरनाम धनुष, मूसल, युग, नाली–देखें गणित - I.1.3।
- भेद व लक्षण
चारित्रसार/99/5 दंडस्त्रिविध:, मनोवाक्कायभेदेन। तत्र रागद्वेषमोहविकल्पात्मानसो दंडस्त्रिविध:। ...अनृतोपघातपैशून्यपरुषाभिशंसनपरितापहिंसनभेदाद्वाग्दंड: सप्तविध:। प्राणिवधचौर्यमैथुनपरिग्रहारंभताडनोग्रवेशविकल्पात्कायदंडोऽपि च सप्तविध:। =मन, वचन, काय के भेद से दंड तीन प्रकार का है, और उसमें भी राग, द्वेष, मोह के भेद से मानसिक दंड भी तीन प्रकार का है। ...झूठ बोलना, वचन से कहकर किसी के ज्ञान का घात करना, चुगली करना, कठोर वचन कहना, अपनी प्रशंसा करना, संताप उत्पन्न करने वाला वचन कहना और हिंसा के वचन कहना यह सात तरह का वचन दंड कहलाता है। प्राणियों का वध करना, चोरी करना, मैथुन करना, परिग्रह रखना, आरंभ करना, ताड़न करना और उग्रवेष (भयानक) धारण करना इस तरह कायदंड भी सात प्रकार का कहलाता है।
पुराणकोष से
(1) केवली के समुद्घात करने का प्रथम चरण । जब केवली के आयुकर्म की अंतर्मुहूर्त तथा अधातिया कर्मों की स्थिति अधिक होती है तब वह दंड, कपाट, प्रतर और लोकपूरण के द्वारा सब कर्मों की स्थिति बराबर कर लेता है । महापुराण 38.307, 48-52, हरिवंशपुराण 56. 72-74
(2) क्षेत्र का प्रमाण । यह दो किष्कु प्रमाण (चार हाथ) होता है । इसके अपर नाम धनुष और नाड़ी है । महापुराण 19.54, हरिवंशपुराण 7.46
(3) प्रयोजन सिद्धि के साम, दान, दंड, भेद इन चार राजनीतिक उपायों में तीसरा उपाय । शत्रु की घास आदि आवश्यक सामग्री की चोरी करा देना, उसका वध करा देना, आग लगा देना, किसी वस्तु को छिपा देना या नष्ट करा देना इत्यादि अनेक बातें इस उपाय के अंतर्गत जाती है । अपराधियों के लिए यही प्रयुज्य होता है । महापुराण 68. 62-65, हरिवंशपुराण 50. 18
(4) कर्मभूमि से आरंभ में योग और क्षेम व्यवस्था के लिए हा, मा, और धिक् इस त्रिविध दंड की व्यवस्था की गयी थी । महापुराण 16.250
(5) चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में एक अजीव रत्न । यह सैन्यपुरोगामी और एक हजार देवों द्वारा रक्षित होता है । भरतेश के पास यह रत्न था । महापुराण 28.2-3, 37. 83-85
(6) इंद्र विद्याधर का पक्षधर एक योद्धा । पद्मपुराण - 12.217
(7) महाबल का पूर्व वंशज एक विद्याधर । यह मरकर अपने ही भंडार में अजगर सर्प हुआ था । महापुराण 5.117-121