सहकारी: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="PrakritText"><span class="GRef"> कार्तिकेयानुप्रेक्षा/218 </span>सव्वाणं दव्वाणं जो उवयारो हवेइ अण्णोण्णं। सो चिय कारणभावो हवदि हु सहकारिभावेण।218।</span> =<span class="HindiText">सभी द्रव्य परस्पर में जो उपकार करते हैं वह सहकारी कारण के रूप में ही करते हैं। (विशेष देखें [[ कारण#III.2.5 | कारण - III.2.5]] | <span class="PrakritText"><span class="GRef"> कार्तिकेयानुप्रेक्षा/218 </span>सव्वाणं दव्वाणं जो उवयारो हवेइ अण्णोण्णं। सो चिय कारणभावो हवदि हु सहकारिभावेण।218।</span> =<span class="HindiText">सभी द्रव्य परस्पर में जो उपकार करते हैं वह सहकारी कारण के रूप में ही करते हैं। (विशेष देखें [[ कारण#III.2.5 | कारण - III.2.5-9]])।</span> | ||
<noinclude> | <noinclude> |
Revision as of 14:16, 3 November 2022
कार्तिकेयानुप्रेक्षा/218 सव्वाणं दव्वाणं जो उवयारो हवेइ अण्णोण्णं। सो चिय कारणभावो हवदि हु सहकारिभावेण।218। =सभी द्रव्य परस्पर में जो उपकार करते हैं वह सहकारी कारण के रूप में ही करते हैं। (विशेष देखें कारण - III.2.5-9)।