सिद्धत्व: Difference between revisions
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<span class="SanskritText">1-<span class="GRef"> पंचाध्यायी x` </span>उ./1142 सिद्धत्वं कृत्स्नकर्मेभ्य: पुंसोऽवस्थांतरं पृथक् । ज्ञानदर्शनसम्यक्त्ववीर्याद्यष्टगुणात्मकम् ।1142।</span> =<span class="HindiText">आत्मा की संपूर्ण कर्मों से रहित और ज्ञान, दर्शन, सम्यक्त्व वीर्य आदि आठ गुण स्वरूप शुद्ध अवस्था का होना ही सिद्धत्व है। | <span class="SanskritText">1-<span class="GRef"> पंचाध्यायी x` </span>उ./1142 सिद्धत्वं कृत्स्नकर्मेभ्य: पुंसोऽवस्थांतरं पृथक् । ज्ञानदर्शनसम्यक्त्ववीर्याद्यष्टगुणात्मकम् ।1142।</span> =<span class="HindiText">आत्मा की संपूर्ण कर्मों से रहित और ज्ञान, दर्शन, सम्यक्त्व वीर्य आदि आठ गुण स्वरूप शुद्ध अवस्था का होना ही सिद्धत्व है। | ||
2-जीव का पारिणामिक भाव है-देखें [[ पारिणामिक ]]; | 2-जीव का पारिणामिक भाव है-देखें [[ पारिणामिक ]]; | ||
Revision as of 12:58, 10 October 2022
सिद्धांतकोष से
1- पंचाध्यायी x` उ./1142 सिद्धत्वं कृत्स्नकर्मेभ्य: पुंसोऽवस्थांतरं पृथक् । ज्ञानदर्शनसम्यक्त्ववीर्याद्यष्टगुणात्मकम् ।1142। =आत्मा की संपूर्ण कर्मों से रहित और ज्ञान, दर्शन, सम्यक्त्व वीर्य आदि आठ गुण स्वरूप शुद्ध अवस्था का होना ही सिद्धत्व है।
2-जीव का पारिणामिक भाव है-देखें पारिणामिक ;
3-स्वभाव व्यंजन पर्याय है-देखें पर्याय - 3.9।
पुराणकोष से
अष्ट कर्मों से रहित और सम्यक्त्व आदि अष्ट गुणों से सहित आत्मा का शुद्ध स्वरूप । वीरवर्द्धमान चरित्र 19.234