रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 1 - अर्थ: Difference between revisions
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<p>जिन्होंने [निर्धूत कलिलात्मने] सम्पूर्ण कर्म कलंक को धोकर अपनी आत्मा को शुद्ध कर लिया है । [यद्विद्या] जिनके केवलज्ञान रूपी [दर्पणायते] दर्पण में [सालोकानां त्रिलोकानां] तीनों लोक और अलोक स्पष्ट झलकते हैं उन [नम: श्री वर्धमानाय] तीर्थंकर श्री वर्धमान स्वामी को मैं नमस्कार करता हूँ ॥१॥</p> | <p>जिन्होंने <span class="SansWord">[निर्धूत कलिलात्मने]</span> सम्पूर्ण कर्म कलंक को धोकर अपनी आत्मा को शुद्ध कर लिया है । <span class="SansWord">[यद्विद्या]</span> जिनके केवलज्ञान रूपी <span class="SansWord">[दर्पणायते]</span> दर्पण में <span class="SansWord">[सालोकानां त्रिलोकानां]</span> तीनों लोक और अलोक स्पष्ट झलकते हैं उन <span class="SansWord">[नम: श्री वर्धमानाय]</span> तीर्थंकर श्री वर्धमान स्वामी को मैं नमस्कार करता हूँ ॥१॥</p> | ||
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Revision as of 16:13, 15 October 2022
जिन्होंने [निर्धूत कलिलात्मने] सम्पूर्ण कर्म कलंक को धोकर अपनी आत्मा को शुद्ध कर लिया है । [यद्विद्या] जिनके केवलज्ञान रूपी [दर्पणायते] दर्पण में [सालोकानां त्रिलोकानां] तीनों लोक और अलोक स्पष्ट झलकते हैं उन [नम: श्री वर्धमानाय] तीर्थंकर श्री वर्धमान स्वामी को मैं नमस्कार करता हूँ ॥१॥