बल: Difference between revisions
From जैनकोष
mNo edit summary |
No edit summary |
||
Line 23: | Line 23: | ||
<p id="6">(6) तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के प्रथम गणधर । <span class="GRef"> महापुराण 53. 46 </span></p> | <p id="6">(6) तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के प्रथम गणधर । <span class="GRef"> महापुराण 53. 46 </span></p> | ||
<p id="7">(7) आगामी पांचवां नारायण । <span class="GRef"> महापुराण 76. 487-488 </span></p> | <p id="7">(7) आगामी पांचवां नारायण । <span class="GRef"> महापुराण 76. 487-488 </span></p> | ||
<p id="8">(8) बलभद्र | <p id="8">(8) बलभद्र, ये नारायण के भाई होते हैं । ये नौ हैं― विजय, अचल, सुधर्म, सुप्रभ, सुदर्शन, नांदी, नंदिमित्र, रामचंद्र और पद्म (बलराम) । <span class="GRef"> महापुराण 2.117, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 290 </span></p> | ||
<p id="9">(9) बलराम । <span class="GRef"> महापुराण 71.76 </span></p> | <p id="9">(9) बलराम । <span class="GRef"> महापुराण 71.76 </span></p> | ||
<p id="10">(10) सैन्य शक्ति और आत्मबल । स्वयंबुद्ध ने महाबल में मंत्रशक्ति के द्वारा इन दोनों बलों का यथासमय संचार किया था । <span class="GRef"> महापुराण 5.251 </span></p> | <p id="10">(10) सैन्य शक्ति और आत्मबल । स्वयंबुद्ध ने महाबल में मंत्रशक्ति के द्वारा इन दोनों बलों का यथासमय संचार किया था । <span class="GRef"> महापुराण 5.251 </span></p> |
Revision as of 00:11, 21 October 2022
सिद्धांतकोष से
पुराणकोष से
(1) भगवान् वृषभदेव के सतत्तरवें गणधर । महापुराण 43.65
(2) अर्ककीर्ति के पुत्र स्मितयश का पुत्र । हरिवंशपुराण 13. 7-8
(3) प्रथम बलभद्र विजय के पूर्व जन्म का नाम । महापुराण 20. 232-233
(4) विद्याधरों का स्वामी, राम का व्याघ्ररथारोही योद्धा । पद्मपुराण 58. 3-7
(5) राम का एक योद्धा । यह बहुरूपिणी विद्या के साधक रावण को विद्या की साधना से च्युत करने के लिए लंका गया था । पद्मपुराण 70. 12-16
(6) तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के प्रथम गणधर । महापुराण 53. 46
(7) आगामी पांचवां नारायण । महापुराण 76. 487-488
(8) बलभद्र, ये नारायण के भाई होते हैं । ये नौ हैं― विजय, अचल, सुधर्म, सुप्रभ, सुदर्शन, नांदी, नंदिमित्र, रामचंद्र और पद्म (बलराम) । महापुराण 2.117, हरिवंशपुराण 60. 290
(9) बलराम । महापुराण 71.76
(10) सैन्य शक्ति और आत्मबल । स्वयंबुद्ध ने महाबल में मंत्रशक्ति के द्वारा इन दोनों बलों का यथासमय संचार किया था । महापुराण 5.251