श्रिति: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
mNo edit summary |
||
Line 8: | Line 8: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: श]] | [[Category: श]] | ||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] |
Revision as of 22:29, 17 October 2022
भगवती आराधना/171/388 जा उवरि-उवरि गुणपडिवत्ती सा भावदो सिदी होदि। दव्वसिदी णिस्सेणी सोवाणं आरुहंतस्स।171। = सम्यग्दर्शन आदि शुद्ध गुणों की गुणित रूप उत्तरोत्तर उन्नतावस्था को प्राप्त कर लेना यह भाव रूप श्रिति है। और कोई उच्च स्थान में स्थित पदार्थ लेना चाहे तो निश्रेणी का अवलंबन लेकर एक-एक सोपान पंक्ति क्रम से चढ़ना वह द्रव्य श्रिति है।