अरक्षा भय: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> <span class="GRef"> पंचाध्यायी / उत्तरार्ध/ </span>श्लोक नं. <span class="SanskritGatha"> अत्राणं क्षणिकैकांते पक्षे चित्तक्षणादिवत्। नाशात्प्रागंशनाशस्य त्रातुमक्षमतात्मनः।531। | <p> <span class="GRef"> पंचाध्यायी / उत्तरार्ध/ </span>श्लोक नं. <span class="SanskritGatha"> अत्राणं क्षणिकैकांते पक्षे चित्तक्षणादिवत्। नाशात्प्रागंशनाशस्य त्रातुमक्षमतात्मनः।531। | ||
<li class="HindiText"> जैसे कि बौद्धों के क्षणिक एकांत पक्ष में चित्त क्षण-प्रतिसमय | <li class="HindiText"> जैसे कि बौद्धों के क्षणिक एकांत पक्ष में चित्त क्षण-प्रतिसमय नश्वर होता है वैसे ही पर्याय के नाश के पहले अंशिरूप आत्मा के नाश की रक्षा के लिए अक्षमता <strong>अत्राणभय</strong> (अरक्षा भय) कहलाता है।531। </li> | ||
Revision as of 16:41, 28 October 2022
पंचाध्यायी / उत्तरार्ध/ श्लोक नं. अत्राणं क्षणिकैकांते पक्षे चित्तक्षणादिवत्। नाशात्प्रागंशनाशस्य त्रातुमक्षमतात्मनः।531।