अर्द्ध पुद्गल परावर्तन: Difference between revisions
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<p><big>देखें [[ अनंत ]]।</big></p> | <p class="SanskritText">धवला पुस्तक 1/1,1,141/393/2 अर्धपुद्गलपरिवर्तनकालः सक्षयोऽप्यनंतः छद्मस्थैरनुपलब्धपर्यंतत्वात्। केवलमनंतस्तद्विषयत्वाद्वा। </p> | ||
<p class="HindiText">= अर्द्ध पुद्गल परिवर्तन काल क्षय सहित होते हुए भी इसीलिए अनंत है कि छद्मस्थ जीवों के द्वारा उसका अंत नहीं पाया जाता है। वास्तव में केवलज्ञान अनंत है अथवा अनंत को विषय करनेवाला होने से वह अनंत है।</p> | |||
<p><big> पाँच प्रकार के परावर्तनों/परिवर्तनों में प्रथम परावर्तन द्रव्य परावर्तन है, जिसका अपरनाम पुद्गल परावर्तन है। उससे आधे या कम काल को अर्ध पुद्गल परावर्तन कहते हैं। यह काल सक्षय होने पर भी छद्मस्थों के द्वारा नहीं जाना जा सकने से अनन्त कहा जाता है। सम्यग्दृष्टि जीव इस काल के अंदर-अंदर मोक्ष चला जाता है। अधिक जानकारी के लिए देखें [[ अनंत ]] देखें [[ संसार ]] देखें [[ सम्यग्दर्शन III.1.4]]।</big></p> | |||
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Revision as of 05:43, 29 October 2022
धवला पुस्तक 1/1,1,141/393/2 अर्धपुद्गलपरिवर्तनकालः सक्षयोऽप्यनंतः छद्मस्थैरनुपलब्धपर्यंतत्वात्। केवलमनंतस्तद्विषयत्वाद्वा।
= अर्द्ध पुद्गल परिवर्तन काल क्षय सहित होते हुए भी इसीलिए अनंत है कि छद्मस्थ जीवों के द्वारा उसका अंत नहीं पाया जाता है। वास्तव में केवलज्ञान अनंत है अथवा अनंत को विषय करनेवाला होने से वह अनंत है।
पाँच प्रकार के परावर्तनों/परिवर्तनों में प्रथम परावर्तन द्रव्य परावर्तन है, जिसका अपरनाम पुद्गल परावर्तन है। उससे आधे या कम काल को अर्ध पुद्गल परावर्तन कहते हैं। यह काल सक्षय होने पर भी छद्मस्थों के द्वारा नहीं जाना जा सकने से अनन्त कहा जाता है। सम्यग्दृष्टि जीव इस काल के अंदर-अंदर मोक्ष चला जाता है। अधिक जानकारी के लिए देखें अनंत देखें संसार देखें सम्यग्दर्शन III.1.4।