पाहुड़: Difference between revisions
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<li>आचार्य कुन्दकुन्द (ई.१२७-१७९) द्वारा ८५ | <li>आचार्य कुन्दकुन्द (ई.१२७-१७९) द्वारा ८५ पाहुड़ ग्रन्थों का रचा जाना प्रसिद्ध है, पर उनमें से निम्न १२ ही उपलब्ध हैं - | ||
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<li>पंचास्तिकाय, </li> | <li>पंचास्तिकाय, </li> | ||
<li>दर्शन | <li>दर्शन पाहुड़,</li> | ||
<li> | <li>सूत्रपाहुड़,</li> | ||
<li>बोध | <li>बोध पाहुड़, </li> | ||
<li> | <li>भावपाहुड़, </li> | ||
<li> | <li>मोक्षपाहुड़, </li> | ||
<li> | <li>लिंगपाहुड़, </li> | ||
<li> शील | <li> शील पाहुड़। <br /> | ||
- दर्शन | - दर्शन पाहुड़ से लेकर शील पाहुड़ पर्यन्त आठ ग्रन्थ अष्टपाहुड़ के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनमें से अन्तिम दो लिंग पाहुड़ व शील पाहुड़ को छोड़कर शेष छः षट्प्राभृत कहलाते हैं। षट्प्राभृत पर आ. श्रुतसागर (ई. १४७३-१५३३) कृत संस्कृत टीका उपलब्ध है। और आठों ही पाहुड़ पर पं. जयचन्द छाबड़ा ने ई. १८१० में देशभाषामय वचनिका लिखी है। </li> | ||
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Revision as of 20:42, 31 October 2022
- देखें - प्राभृत ,
- आचार्य कुन्दकुन्द (ई.१२७-१७९) द्वारा ८५ पाहुड़ ग्रन्थों का रचा जाना प्रसिद्ध है, पर उनमें से निम्न १२ ही उपलब्ध हैं -
- समयसार,
- प्रवचनसार,
- नियमसार,
- पंचास्तिकाय,
- दर्शन पाहुड़,
- सूत्रपाहुड़,
- बोध पाहुड़,
- भावपाहुड़,
- मोक्षपाहुड़,
- लिंगपाहुड़,
- शील पाहुड़।
- दर्शन पाहुड़ से लेकर शील पाहुड़ पर्यन्त आठ ग्रन्थ अष्टपाहुड़ के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनमें से अन्तिम दो लिंग पाहुड़ व शील पाहुड़ को छोड़कर शेष छः षट्प्राभृत कहलाते हैं। षट्प्राभृत पर आ. श्रुतसागर (ई. १४७३-१५३३) कृत संस्कृत टीका उपलब्ध है। और आठों ही पाहुड़ पर पं. जयचन्द छाबड़ा ने ई. १८१० में देशभाषामय वचनिका लिखी है।