विशद: Difference between revisions
From जैनकोष
ShrutiJain (talk | contribs) No edit summary |
No edit summary |
||
Line 10: | Line 10: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: व]] | [[Category: व]] | ||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] |
Revision as of 08:05, 12 November 2022
सिद्धि विनिश्चय/ मू./1/9/38 पश्यन् स्वलक्षणान्येकं स्थूलमक्षणिकं स्फुटम् यद्व्यवस्यति वैशद्यं तद्विद्धि सद्शस्मृतेः।9। = परस्पर में विलक्षण निरंश क्षणरूप स्वलक्षणों को देखने वाला स्थूल और अक्षणिक एक वस्तु को स्पष्ट रूप से निश्चित करता है। अतः वैशद्य व्यवसायात्मक सविकल्पक प्रत्यक्ष से संबद्ध है।
परीक्षामुख/2/4 प्रतीत्यंतराव्यवधानेन विशेषवत्तया वा प्रतिभासनं वैशद्यं। = जो प्रतिभास बिना किसी दूसरे ज्ञान की सहायता के स्वतंत्र हो, तथा हरा पीला आदि विशेष वर्ण और सीधा टेढ़ा आदि विशेष आकार लिये हो, उसे वैशद्य कहते हैं।
न्यायदीपिका/2/ #2/24 किमिदं विशदप्रतिभासत्वं नाम। उच्यतेः ज्ञानावरणस्य क्षयाद्विशिष्टक्षयोपशमाद्वा शब्दानुमाना-द्यसंभवि यन्नैर्मल्यमनुभवसिद्धम् दृश्यते खल्वग्निरस्तीत्याप्तवचनाद्वमादि लिंगच्चोत्पंनाज्ज्ञानादयमग्निरित्युत्पंनस्यैंद्रिय-कस्य ज्ञानस्य विशेषः। स एव नैर्मल्य, वैशद्यम्, स्पष्टत्वमित्यादिभिः शब्दैरभिधीयते। = प्रश्न–विशद प्रतिभास किसको कहते हैं? उत्तर–ज्ञानावरण कर्म के सर्वथा क्षय से अथवा विशेष क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाली और शब्द तथा अनुमानादि (परोक्ष) प्रमाणों से नहीं हो सकने वाली जो अनुभव सिद्ध निर्मलता है वही विशद-प्रतिभास है। किसी प्रामाणिक पुरुष के ‘अग्नि है’ इस प्रकार के वचन से और ‘यह प्रदेश अग्निवाला है, क्योंकि धुआँ है’ इस प्रकार के इंद्रियज्ञान में विशेषता देखी जाती है। वही विशेषता निर्मलता, विशदता और स्पष्टता इत्यादि शब्दों द्वारा कही जाती है।