अपरिस्राविता: Difference between revisions
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Revision as of 20:47, 15 November 2022
भगवती आराधना / मुल या टीका गाथा 486,495 लोहेण पदीमुदयं व जस्स आलोचिदा अदीचारा। ण परिस्सवंति अण्णत्तो सो अपरिस्सवो होदि ॥486॥ इच्चेवमादिदोसा ण होंति गुरुणो रहस्सधारिस्स। पुट्ठेव अपुट्ठे वा अपरिस्साइस्स धारिस्स ॥495॥
= जैसे तपा हुआ लोहे का गोला चारों तरफ से पानी का शोषण कर लेता है, वैसे ही जो आचार्य क्षपक के दोषों को सुनकर अपने अंदर ही शोषण कर पूछने पर अथवा न पूछने पर भी जो उन्हें अन्य पर प्रगट न करे, वह अपरिस्रावी गुण का धारक है।