नि:शंकिता: Difference between revisions
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Revision as of 23:51, 19 November 2022
सम्यग्दर्शन का प्रथम अंग । इसमें जिन भाषित धर्म के सूक्ष्म तत्त्व-चिंतन में आप्त पुरुषों के वचन अन्यथा नहीं हो सकते ऐसा विश्वास होता है । महापुराण 63.312-313, वीरवर्द्धमान चरित्र 6.63