प्रकीर्णक देव: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
mNo edit summary |
||
Line 3: | Line 3: | ||
</span></p> | </span></p> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li><span class="HindiText"> भवनवासी आदि के इंद्रों के परिवार में प्रकीर्णकों का प्रमाण - देखें [[ भवनवासी | भवनवासी | <li><span class="HindiText"> भवनवासी आदि के इंद्रों के परिवार में प्रकीर्णकों का प्रमाण - देखें [[ भवनवासी | भवनवासी देव ]]। </span></li> | ||
</ul> | </ul> | ||
Revision as of 11:33, 26 November 2022
सर्वार्थसिद्धि/4/4/239/6 प्रकीर्णकाः पौरजानपदकल्पाः। = जो गाँव और शहर में रहनेवालों के समान हैं उन्हें प्रकीर्णक कहते हैं। ( राजवार्तिक/4/4/8/213/8 ); ( महापुराण/22/29 )।
तिलोयपण्णत्ति/3/67 पइण्णया पुरिजणसरिच्छा। = प्रकीर्णक देव पौर जन अर्थात् प्रजा के सदृश होते हैं। ( त्रिलोकसार/223-224 )।
- भवनवासी आदि के इंद्रों के परिवार में प्रकीर्णकों का प्रमाण - देखें भवनवासी देव ।