कर्म निर्जरा व्रत: Difference between revisions
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<li class="HindiText"> सम्यक्चारित्र की भावना के अर्थ भाद्रपद शु.१४; </li> | |||
<li class="HindiText"> सम्यक्तप की भावना के अर्थ आसौज (क्वार) शु.१४। इन चार तिथियों के चार उपवास। </li> | |||
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<li class="HindiText">नं. १ के लिए ‘ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धये नम:’; </li> | |||
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<li class="HindiText"> नं.३ के लिए ‘ॐ ह्रीं सम्यक्चारित्राय नम:’; और </li> | |||
<li class="HindiText">नं.४ के लिए ‘ॐ ह्रीं सम्यक्तपाय नम:’। उस उस दिन उस-उस मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करना। (व्रत-विधान संग्रह/पृ.९५), (किशनसिंह क्रिया कोश)। </li> | |||
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Revision as of 21:16, 24 December 2013
- विधि
- दर्शनविशुद्धि के अर्थ आषाढ़ शु.१४;
- सम्यग्ज्ञान की भावना के अर्थ श्रावण शु.१४;
- सम्यक्चारित्र की भावना के अर्थ भाद्रपद शु.१४;
- सम्यक्तप की भावना के अर्थ आसौज (क्वार) शु.१४। इन चार तिथियों के चार उपवास।
- जाप्य मन्त्र--
- नं. १ के लिए ‘ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धये नम:’;
- नं.२ के लिए ‘ॐ ह्रीं सम्यग्ज्ञानाय नम:’;
- नं.३ के लिए ‘ॐ ह्रीं सम्यक्चारित्राय नम:’; और
- नं.४ के लिए ‘ॐ ह्रीं सम्यक्तपाय नम:’। उस उस दिन उस-उस मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करना। (व्रत-विधान संग्रह/पृ.९५), (किशनसिंह क्रिया कोश)।