स्थितिबंध संबंधी शंका समाधान: Difference between revisions
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<p class="HindiText" id="3"><strong>3. विग्रह गति में नारकी संज्ञी का भुजगार स्थितिबंध कैसे</strong></p> | <p class="HindiText" id="3"><strong>3. विग्रह गति में नारकी संज्ञी का भुजगार स्थितिबंध कैसे</strong></p> | ||
<p><span class="PrakritText"><span class="GRef"> | <p><span class="PrakritText"><span class="GRef"> कषायपाहुड़/4/3-22/51/27/7 </span>संकिलेसक्खएण विणा तदियसमए कधं सण्णिं ट्ठिदिं बंधदि। ण संकिलेसेण विणा सण्णिपंचिंदियजादि मस्सिदूण ट्ठिदिबंधवड्ढीए उवलंभादो।</span> = <span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>-संक्लेश क्षय के बिना (विग्रहगति के) तीसरे समय में वह (नरक गति को प्राप्त करने वाला) जीव संज्ञी की (भुजगार) स्थिति को कैसे बाँधता है ? | ||
<strong>उत्तर</strong>-क्योंकि संक्लेश के बिना संज्ञी पंचेंद्रिय जाति के निमित्त से उसके स्थितिबंध में वृद्धि पायी जाती है।</span></p> | <strong>उत्तर</strong>-क्योंकि संक्लेश के बिना संज्ञी पंचेंद्रिय जाति के निमित्त से उसके स्थितिबंध में वृद्धि पायी जाती है।</span></p> | ||
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Revision as of 16:24, 2 December 2022
स्थितिबंध संबंधी शंका-समाधान
1. साता के जघन्य स्थिति बंध संबंधी
धवला 6/1,9-7,9/186/1 तीसियस्स दंसणावरणीयस्स अंतोमुहुत्तमेत्तट्ठिदिं बंधमाणे सुहुमसांपराइयो तीसियवेदणीयभेदस्स सादावेदणीयरस पण्णारससागरोवमकोडाकोडी उक्करसट्ठिदिअरस्स कधं वारसमुहुत्तियं जहण्णट्ठिदिं बंधदे। ण, दंसणावरणादो सुहस्स सादावेदणीयस्स विसोधीदो सुट्ठु ट्ठिदिबंधोवट्टणाभावा। = तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति वाले दर्शनावरणीय कर्म की अंतर्मुहूर्त मात्र जघन्य स्थिति को बाँधने वाला सूक्ष्म सांपराय संयत तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति वाले वेदनीय कर्म के भेदस्वरूप पंद्रह कोड़ाकोड़ी सागरोपम प्रमित उत्कृष्ट स्थितिवाले साता वेदनीय कर्म की बारह मुहूर्त वाली जघन्य स्थिति को कैसे बाँधता है ? उत्तर-नहीं, क्योंकि, दर्शनावरणीय कर्म की अपेक्षा शुभ प्रकृति रूप सातावेदनीय कर्म की विशुद्धि के द्वारा स्थितिबंध की अधिक अपवर्तना का अभाव है।
2. उ. अनुभाग के साथ अनुत्कृष्ट स्थिति बंध कैसे
धवला 12/4,2,13,40/393/6 उक्कस्साणुभागं बंधमाणो णिच्छएण उक्कसियं चेव ट्ठिदिं बंधदि, उक्कस्ससंकिलेसेण विणा उक्कस्साणुभागबंधाभावादो। एवं संते कधमुक्कस्साणुभागे णिरुद्धे अणुक्कस्सट्ठिदीए संभवो त्ति। ण एस दोसो, उक्कस्साणुभागेण सह उक्कस्सट्ठिदिं बंधिय पडिभग्गस्स अधट्ठिदिगलणाए उक्कस्सट्ठिदीदो समऊणादिवियप्पुवलंभादो। ण च अणुभागस्स अद्धट्ठिदिगलणाए घादो अत्थि, सरिसधणिय परमाणुणं तत्थुवलंभादो।...पडिभग्गपढमसमयप्पहुडि जाव अंतोमुहूत्तकालो ण गदो ताव अणुभागखंडयघादाभावादो। = प्रश्न-चूँकि उत्कृष्ट अनुभाग को बाँधने वाला जीव निश्चय से उत्कृष्ट स्थिति को ही बाँधता है, क्योंकि उत्कृष्ट संक्लेश के बिना उत्कृष्ट अनुभाग का बंध नहीं होता; अतएव ऐसी स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग की विवक्षा में अनुत्कृष्ट स्थिति की संभावना कैसे हो सकती है ? उत्तर-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि उत्कृष्ट अनुभाग के साथ उत्कृष्ट स्थिति को बाँधकर प्रतिभग्न हुए जीव के अध:स्थिति के गलने से उत्कृष्ट स्थिति की अपेक्षा एक समय हीन आदि स्थिति विकल्प पाये जाते हैं। और अध:स्थिति के गलने से अनुभाग का घात कुछ नहीं होता है, क्योंकि, समान धनवाले परमाणु वहाँ पाये जाते हैं।...प्रतिभग्न होने के प्रथम समय से लेकर जब तक अंतर्मुहूर्त काल नहीं बीत जाता है तब तक अनुभाग कांडक घात संभव नहीं है।
3. विग्रह गति में नारकी संज्ञी का भुजगार स्थितिबंध कैसे
कषायपाहुड़/4/3-22/51/27/7 संकिलेसक्खएण विणा तदियसमए कधं सण्णिं ट्ठिदिं बंधदि। ण संकिलेसेण विणा सण्णिपंचिंदियजादि मस्सिदूण ट्ठिदिबंधवड्ढीए उवलंभादो। = प्रश्न-संक्लेश क्षय के बिना (विग्रहगति के) तीसरे समय में वह (नरक गति को प्राप्त करने वाला) जीव संज्ञी की (भुजगार) स्थिति को कैसे बाँधता है ? उत्तर-क्योंकि संक्लेश के बिना संज्ञी पंचेंद्रिय जाति के निमित्त से उसके स्थितिबंध में वृद्धि पायी जाती है।