श्लेष: Difference between revisions
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औदारिक शरीर में | <span class="GRef">गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/30 पर उद्धृत श्लोक नं. 2</span><p class="SanskritText"> "वातः पित्तं तथा श्लेषा सिरा स्नायुश्च चर्म च। जठराग्निरिति प्राज्ञैः प्रोक्ताः सप्तोपधातवः।"</p> | ||
<p class="HindiText">= वात, पित्त, श्लेष्म, सिरा, स्नायु, चर्म, उदराग्नि ये सात उपधातु हैं।</p> | |||
<p class="HindiText">औदारिक शरीर के बारे में अधिक जानकारी के लिये देखें [[ औदारिक#1 | औदारिक - 1]]।</p> | |||
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Revision as of 08:28, 5 December 2022
गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/30 पर उद्धृत श्लोक नं. 2
"वातः पित्तं तथा श्लेषा सिरा स्नायुश्च चर्म च। जठराग्निरिति प्राज्ञैः प्रोक्ताः सप्तोपधातवः।"
= वात, पित्त, श्लेष्म, सिरा, स्नायु, चर्म, उदराग्नि ये सात उपधातु हैं।
औदारिक शरीर के बारे में अधिक जानकारी के लिये देखें औदारिक - 1।